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बुधवार, अक्तूबर 30, 2024

कवि कुशेश्वर की कविताएँ




दोस्तो, संस्कृति सरोकार के इस मंच पर इस बार प्रस्तुत हैं,


कवि कुशेश्वर की कविताएँ




(1)



आओ बंधु !

आओ बंधु
हाथ मिलाएं
सुलगाएं हाथों की ठंडक
होठों पे सूरज ले आएं
तन से मिला लें तन
मौसम फागुन हो जाए
नैनों से मिला लें नैन
मन जामुन हो जाए
हम दोनों को छूकर
गुज़रे जो समीर
हर घर के आँगन को
कर दे आम की बगिया
गली-गली में नाचे मोर
सुबह-सबेरे देखें मंजरी
शाम का टपके आम
आओ बंधु, हाथ मिलाएं
सुलगाएं हाथों की ठंडक।



(2)

गड़े मुर्दे


गड़े मुर्दे
नए और पुराने
उखाड़े जा रहे हैं फिर से।

पुरातत्ववेत्ता का मानना है
मुर्दों पर मिली चादर की उम्र से
तय की जा सकेगी स्वर्ग की दूरी
धरती पर चाहे जितने
जैसे मतभेद हों
आकाश और स्वर्ग के मामले में
‘आवाज़ दो हम एक हैं।’


खुद को मुर्दों से जोड़ने की ललक
हर दरवाज़े पर देखी जाती है
इस घोषणा-पत्र के साथ -
‘एक क़ब्र हमारे आँगन में भी है
जहाँ मुर्दे की तलाश जारी है।’

कुछ लोग
मकान की नींव में मिली राख लिए
पंक्तिबद्ध खड़े हैं प्रयोगशाला के सामने
शायद किसी मुर्दे का जीवाणु मिल जाए।


कुछ लोग
असहायों को ज़िंदा दफ़्न करने में जुटे हैं
कि आने वाले कल में
वे उखाड़ सकें गड़े मुर्दे।




(3)

लहराने का कारण

झंडे
बहुत ऊँचे होकर
इसलिए लहराते हैं
क्योंकि हवाओं की शह मिलती है
और डंडे का सहारा पाते हैं।



(4)

आईने का सच

लोग कहते हैं -
आईना सच बोलता है
मगर यह भूल जाते है्
कि वह बाएं को दायां
और दाएं को बायां दिखाता है।



(5)

अछूत


वह जब भी मुझसे मिलता
कंधों पर उसके होता
खुशियों से भरा हिमालय
ललाट पर होता नालन्दा का सूरज
होठों पर होती
गंगा-जमुना की अमर कहानी
बड़े जतन से दिखलाता वह
एक हाथ में इतिहास
दूसरे में भूगोल का मेला
वह था मानता
मैं हूँ उसका ऐसा साथी
जो भूगोल से बाहर निकल
रच रहा था नई दुनिया का विश्वास
किंतु अचानक एक दिन न जाने कैसे
फटे-पुराने शब्द-कोश से
एक शब्द छिटक कर कहीं आ गिरा
वह ठिठक गया बंद घड़ी सा
गिर गया हिमालय उसके कंधे से
गंगा-जमुना में आ गई बाढ़
टूटे कई किनारे
डूब गया था उसका सूरज
सागर में उठे झाग की हद तक
वह फेनिल हो उठा था
आख़िर था वह कौन सा शब्द
जो सूरज, चाँद, तारों के पास नहीं था
समुद्र, नदी, झरने, पेड़-पौधों को
छू तक नहीं रहा था
न फूलों के रंग, न हवाओं के संग
आख़िर उस ‘अछूत’ शब्द में
ऐसा क्या था जो आकाश से टपका नहीं
ज़मीन से उगा नहीं
मेरे चेहरे पर भी लिखा नहीं था
मगर वह उसे लगातार पढ़ रहा था !

परिचय

जन्म : 30 जनवरी 1949 दरभंगा के खैरा गाँव में। स्नातक डिग्री के बाद आकाशवाणी कोलकाता में सामयिक उद्घोषक एवं एफ. एम. प्रेजेंटर तथा साहित्य एवं सांस्कृतिक रेडियो मासिक मैगज़ीन का संकलन व संपादन। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं एवं कविता, कहानी, नाटक प्रकाशित।



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गुरुवार, जुलाई 18, 2019

“अगर मैं तुझे किसी चकले या सड़क पर धंधा करते मिलती तो भी क्या तू मुझे यही कहता, ‘आ चल दीदी घर चलें’?”


अगर मैं तुझे किसी चकले या सड़क पर धंधा करते मिलती तो भी क्या तू मुझे यही कहता, आ चल दीदी घर चलें’?” 




बहुत दिनों के बाद कोई पुस्तक एक ही सिटिंग में पढ़ कर समाप्त की, कहानियां तो बहुत सी पढ़ी हैं एक है सिटिंग मेंहरपिंदर राणा लिखित हाल ही में प्रकाशित पंजाबी उपन्यास की जाणा मैं कौण किन्नरों के जीवन पर आधारित लेखिका के व्यापक शोध और बरसों के परिश्रम का परिणाम है। किन्नर पुत्री को जन्म देने पर पिता भी माँ को ही कसूरवार ठहरा कर अपनी भड़ास निकालता रहता है। कालांतर में पिता द्वारा उस बच्ची को महंत किन्नर को सौंप दिया जाता है। माँ की व्यथा का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं जो अपने दिल का दर्द किसी से सांझा तक नहीं कर पाती और अपनी उस बच्ची से संबंधित अपनी सारी अनुभूतियों को चोरी-छिपे अपनी डायरी में दर्ज़ करती रहती है। 

15 अप्रैल 2014 को जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले द्वारा किन्नरों को थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता प्रदान की जाती है तो उस दिन माँ को टी वी स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए  और बाद में डायरी में कुछ लिखते देख उस बच्ची से 15 साल छोटा बेटा जो कि अब पुलिस विभाग में कार्यरत है, उत्सुकतावश चोरी-छिपे माँ की डायरी से उसे इस हक़ीकत का पता चलता है तो अपनी उस बहन को ढूँढ निकालना उसके जीवन का मकसद बन जाता है। 

एक दिन वह उस तक पहुँच जाता है और अपनी दीदी से घर चलने का अनुरोध करता है। बहन एक दिन माँ से मिलने आने का वादा करती है पर उससे पहले वह भाई के समक्ष एक सवाल रखती है -  

अगर मैं तुझे किसी चकले या सड़क पर धंधा करते मिलती तो भी क्या तू मुझे यही कहता, आ चल दीदी घर चलें’?”
 
छन्नो माँ का हाथ पकड़ कर बोली, माँतुम्हें तो पता है घर से निकाले जान पर आश्रय कम ही मिलता है। अगर मुझे भी पाँवों में घुघरू बाँधने पड़ते तो क्या तुम फिर से मुँह फेर लेती?”

माँ इस सवाल पर ख़ामोश थी।

बोलो न माँ, जवाब दो देना ही पड़ेगा।

माँ हूँ पुत्तर। तुझे उस हालत में देख कर आँखें दु:ख से मुंद गई थीं। तेरी हालत देखने की हिम्मत न होने के कारण ही मुँह फिराया था।... परंतु तुम्हारे अस्तित्व की सच्चाई से इन्कार न तो मुझे कल था और न ही आज है। हाँ, बेबस ज़रूर थी क्योंकि पराधीन थी। पल-पल पिघलती रही हूँ। तुम्हारी एक झलक देखने के लिए जगह-जगह माथा टेका है।  मैं तो अपने पेट की गाँठ भी नहीं खोल सकती थी। यह सुनकर कर छन्नो का दिल भी भर आया।

माँ, यह तुम्हारी निशानी गले से लगी रहती थी। इसी में तुम धड़कती रहती थी। पहाड़ जैसी रातें और कई डरावनी काली रातें इसीके सहारे गुज़ारीं। तुम्हारी आशीषें ही थीं कि मुझे ममता बहन मिल गई और मैं तुम्हारा सपना पूरा कर सकी। इसके बिना कुछ संभव नहीं था। माँ ने उठ कर ममता का भी माथा चूमा। उसकी भी आँखें छलक उठीं।

न बेटी, तू तो मेरी बहादुर बेटी है।

नहीं माँ, जब सर पर आती है न तब सब कुछ सहना आ जाता है। बहुत दुख सह कर तुम्हारा सपना पूरा किया है। बहादुर तो माँ तुम्हारा यह बेटा है जिसने इतनी मेहनत से हमें ढूँढा है।


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अच्छा माँ अब हम चलते हैं। फिर आएंगे मिलने। माँ की आँखें छलक उठीं।

जाना कहाँ है बेटा ? अब यहीं रहेंगी मेरी बेटियां।

नहीं माँ ! रहूंगी तो मैं डेरे में ही। वही मेरी कर्म भूमि है। मेरा जीवन डेरे से जुड़ा है और मैं कईयों के जीवन से जुड़ी हूँ। वही मेरा असली घर है जहाँ मैंने जीवन के सुख-दु:ख काटे हैं।

मैं मानती हूँ बेटा तुम्हारी बात, पर मुझमें अब हिम्मत है कि मैं अपनी बेटी को घर में रख सकूं।

माँ कोई बात नहीं, वह दिन भी ज़रूर आएगा जब हर माता-पिता में हिम्मत आएगी हमारे जैसी औलाद को घर में रखने की।
मेरे लिए तो वह दिन आज ही है।

माँ की बात पूरी होने से पहले ही देबो मौसी जल्दी-जल्दी चल कर आते हुए बोली – अरी जीतो, न मंगनी न शादी ये किन्नर क्यों आए हैं। बहू कहती है कि सुबह से आए हुए हैं। मैं तो शहर चली गई थी दवा-दारू लेने। कहती है सारा गाँव टोह लेता फिर रहा है।

अरी बहन ये तो मेरी बेटियां हैं। यह मेरी बेटी छन्नो है। मेरे जिगर का टुक़ड़ा। करने से बड़ी। मंजीत ने अपनी बेटी को गले से लगाते हुए कहा। देबो सकपका कर पीछे हट गई।

पर जीतो सारा गाँव तो आन खड़ा है टोह लेने को। उसे क्या जवाब देंगे कुछ सोच लो अभी ही, क्या जवाब देना है।

सोचना क्या है मेरा तो काम आसान हो गया। कहते हुए छन्नों की बाँह पकड़ माँ दरवाज़े की ओर बढ़ी।

आओ भई औलाद वालो। आओ, आओ। दौड़ कर आओ, आपको अपने बच्चों से मिलवाऊं। यह मेरी बेटी। मेरी छन्नो। मुझ से छीन ली गई थी। अब मिली है मुझे। मेरी अच्छी बिटिया। माँ ने छन्नो को गले लगाया।

गाँव वालो जिसे आप किन्नर समझते हैं न, इसे मैंने ही जन्म दिया है परंतु मैं अपने घर वालों से और मेरे घर वाले समाज से डरते थे तभी तो अपने हाथों महंत को सौंप दी थी। अब मैं स्वीकार करती हूँ अपनी बेटी को। जैसे मेरा बेटा, वैसे ही मेरी बेटी छन्नो। करने से बड़ी। मुझे अपनी संतान स्वीकार है, गाँव वालो स्वीकार है... माँ पूरे जोश से बोल रही है।

समय स्तब्ध सा खड़ा है।     

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(एक किन्नर के स्वावलंबी बन कर टेक्सटाइल मिल के मालिक बनने, अपनी माँ के सपने को पूर्ण करने और किन्नरों के पाँवों तले ज़मीन मजबूत करने और पुख्ता पहचान की संघर्षगाथा है की जाणा मैं कौऩ’ )  
                         

           प्रस्तुति :     नीलम अंशु                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                      
            

शनिवार, जुलाई 01, 2017

गोर्की सदन में अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल पर संगोष्ठी का आयोजन।




कोलकाता 24 जून . "सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए क़ातिल में है।" ये चर्चित पंक्तियां हैं हमारे देश के अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की जो एक महान शायर भी थे और चर्चित काकोरी कांड के मुख्य नायक भी।  देश को आज़ाद करवाने  के जज्बे में रामप्रसाद बिस्मिल और उसके सहयोगियों ने मिलकर काकोरी ट्रेन डकैती कर सरकारी खजाने को लूटा था, जिसके परिणाम स्वरूप तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने उन पर मुकदमा चलाकर 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी थी। उन्होंने वीर रस से ओतप्रोत अनेक कविताएँ लिखी थीं,जिसने स्वाधीनता सेनानियों में  जोश भरा था। 


आजादी के 70 साल कार्यक्रमों की श्रृंखला के अंतर्गत इसकी पांचवीं कड़ी के रूप में कोलकाता की पंजाबी साहित्य सभा तथा वाक्  के संयुक्त तत्वावधान में रूस के विज्ञान और संस्कृति केंद्र गोर्की सदन में राम प्रसाद बिस्मिल पर एक संगोष्ठी डॉक्टर जसबीर चावला की अध्यक्षता में आयोजित की गई, जिसमें मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित थे - प्रलेस की बंगाल इकाई के महासचिव जितेंद्र धीर और अन्य वक्ताओं में थे गोर्की सदन के जनसंपर्क अधिकारी गौतम घोष, डॉ. सेराज खान बातिश तथा रावेल पुष्प ।  इस मौके पर  आकाशवाणी दिल्ली एफ़ एम. रेनबो इंडिया चैनल की कार्यक्रम प्रस्तोता (आर. जे.) तथा प्रमुख अनुवादिका  नीलम शर्मा 'अंशु' ने ऑडियो क्लिप भेजकर बिस्मिल के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।


कार्यक्रम के दूसरे सत्र में आकाशवाणी राँची के पूर्व निदेशक तथा शायर कुमार बृजेंद्र की अध्यक्षता तथा रावेल पुष्प के संचालन में एक कवि गोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें - सर्वश्री डॉक्टर सेराज खान बातिश, डॉक्टर करुणा पांडे, जीतेंद्र जीतांशु, भूपेंद्र सिंह बशर, नवीन कुमार, जितेंद्र धीर, डॉ. जसवीर  चावला, डॉ. शाहिद फ़रोगी, रावेल पुष्प, लक्ष्मी जायसवाल, विमल शर्मा, दिनेश प्रसाद दिनेश, सागर चौधरी, जगमोहन सिंह गिल, अशोक पागल, संदीप खनूजा तथा अन्य ने  महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की।   

गोर्की सदन में देश के स्वाधीनता सेनानियों को स्मरण  करते हुए इस तरह के आयोजित हो रहे कार्यक्रमों के प्रति नगर के श्रोताओं में खासी रुचि जागृत हुई है।






















                   प्रमुख अख़बारों में कवरेज।


दैनिक जागरण।

















जनसत्ता।




रिपोर्ट व तस्वीरें श्री रावेल पुष्प (पत्रकार - साहित्यकार) के सौजन्य से।


 प्रस्तुति - नीलम शर्मा  'अंशु'।

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शनिवार, मार्च 07, 2015

शक्ति को अपनी ज़रा पहचान लो। (कविता)।

दोस्तो, बस आधे घंटे बाद तारीख बदल जाएगी और कल की तारीख यानी 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय नारी दिवस के नाम दर्ज है। इस मौके पर प्रस्तुत है 
श्री वीरेंद्र राय (वरिष्ठ राजभाषा प्रबंधक, इंडियन बैंक,  विशाखपट्टनम्) द्वारा रचित कविता 
'शक्ति को अपनी ज़रा पहचान लो' 
आपके समक्ष प्रस्तुत है : - 




सोमवार, मार्च 02, 2015

दो दशकों का सफ़र .........


कोलकाता की नैशनल लाइब्रेरी ने साहित्य से जुड़ने विशेष रूप से बंगाल की माटी में रहते हुए मातृभाषा पंजाबी के साहित्य से जुड़ने का अवसर दिया। शुक्रगुज़ार हूँ कि कोलकाता शहर ने नीलम शर्मा को नीलम शर्मा अंशु बनाया। 21 मार्च को इस कोलकाता शहर में 26 बरसों का सफ़र पूरा हो जाएगा। लगता है जैसे कल की ही बात हो।

जून 2015 में साहित्यिक अनुवाद कार्य से जुड़े मुझे 21 वर्ष पूरे हो जाएंगे। 1994 जून में यह सफ़र शुरू हुआ था। बस छिटपुट कहानियों और आलेखों के अनुवाद से। फिर 1997 में करतार सिंह दुग्गल साहब का उपन्यास पढ़ा, फुल्लां दा साथ। इस उपन्यास ने कुछ ऐसा छाप छोड़ी कि उसे हिंदी में  अनूदित करने का निश्चय किया। अनुवाद के लिए दुग्गल साहब से संपर्क करने पर उन्होंने यह कहते हुए सहमति दे दी कि वैसे तो मैं अपनी रचनाओं के अनुवाद खुद ही करता हूँ परंतु पता नहीं इसकी बारी कब तक आए। तुम करना चाहती हो तो मेरी तरफ से इजाज़त है। अनुवाद कार्य पूर्ण कर प्रकाशन हेतु दुग्गल साहब को ही भेज दिया। चूंकि वे दिल्ली में रहते थे तो प्रकाशकों से संपर्क करने में सुविधा रहेगी उन्हें यह सोचकर। उन्होंने पहले किसी प्रकाशन संस्थान को दिया फिर वापस लिया इस तरह एक दो जगहों पर विलंब होता देख उन्होंने पुन: वापस लेकर इसे अंतत:  शिलालेख प्रकाशन से प्रकाशित करवाया। यह कार्य 2000 में हो पाया। यानी तीन सालों का वक्त प्रकाशन में ही बीत गया। उसके बाद संयोग से ही इकबाल माहल रचित पुस्तक पढ़ी सुरां दे सौदागर तो लगा कि इसे तो हिन्दी में ही होना चाहिए था ताकि उन शख्सीयतों के बारे में सभी तक जानकारी पहुंचे। बस, इसी तरह सिलसिला चल निकला। फिर इसी श्रृंखला में नाम जुड़ा काबुलीवाले की बंगाली बीवी का। अनुवाद हेतु अनुमति के लिए सुष्मिता बंद्योपाध्याय से संपर्क किया। वे एक ही बात पर अड़ी रहीं कि मुझे तीस हज़ार रुपए चाहिए। उन्हें बड़ी मुश्किल से कन्विन्स किया कि पहले आप इजाज़त तो दें प्रकाशक आपको पैसे देगा। ख़ैर एक पुस्तक की बात की थी परंतु राजकमल प्रकाशन ने उनकी अन्य दो पुस्तकों का भी करार कर लिया उनसे। इस तरह काबुली वाले की बंगाली बीवी के बाद तालिबान अफ़गान और मैं, एक अक्षर भी झूठा नहीं  नाम भी इस क्रम में जुड़ गए। काबुलीवाले की बंगाली बीवी 2002 के कोलकाता पुस्तक मेले की हिन्दी पुस्तकों में बेस्ट सेलर रही।

       अब तक 21 वर्षों  के इस सफ़र में पंजाबी और बांगला से हिन्दी में, हिन्दी से पंजाबी, बांगला से पंजाबी आदि यानी कुल मिलाकर 16 पुस्तकों का अनुवाद कर चुकी हूँ जिनमें से 13 प्रकाशित हो चुकी हैं और तीन प्रकाशनीधीन हैं। फुल टाइम केंद्र सरकार की नौकरी करते हुए साथ-साथ शौकिया तौर पर विगत 16-17 वर्षों से एफ. एम. आकाशवाणी पर बतौर रेडियो जॉकी प्रस्तुतियाँ देते हुए कोशिश यही रही कि उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाओं का अनुवाद किया जाए। संख्या पर ध्यान न देकर गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए। पुस्तकों की संख्या भले ही कम हो परंतु पुस्तकों का चयन अच्छा होना चाहिए। अनुवाद कार्य सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने दिल के सकुन के लिए किया। पैसों के लिए कभी नहीं। सिर्फ अनुवाद करना है इसलिए कोई भी काम हाथ में ले लिया जाए, ऐसा भी नहीं किया। उसी पुस्तक के लिए हाँ कही, जिसके लिए दिल ने रज़ामंदी दी। यानी दिल से उसे एन्जॉए भी किया। पेशेवर तौर पर काम करना स्वीकार नहीं किया कि चलो पारिश्रमिक तो मिलना ही है कुछ भी कर लो। तिस पर भी गद्य में ही मन ज़्यादा रमता है पद्य के मुकाबले।

       बचपन में पिता हमेशा हम बच्चों को पढ़ाई को महत्ता देने की बात कहते। कोर्स से इतर पुस्तकें पढ़ने या रेडियो सुनने तक की इजाज़त नहीं थी, कोर्स की ही किताबें पढ़ने की ताकीद की जाती। यह भी संयोग है कि बचपन में जिन कार्यों की मनाही थी, बाद में बड़े होने पर वही क्षेत्र काम का हिस्सा बना। अफ़सोस है कि ईश्वर ने पिता को इन उपलब्धियों को देखने का मौक़ा ही नहीं दिया। उन्होंने बस अख़बारों और पत्रिकाओं में कहानियों के अनुवाद और आलेख छपते ही देखे सिर्फ तीन-साढ़े तीन साल तक। हाँ, माँ मेरी हर प्रकाशित रचना की पहली पाठक रही हैं। उन्होंने मुझे इस क्षेत्र में हर संभव सपोर्ट दिया।

       

अनूदित पुस्तकों की सूची –

1. फूलों का साथ   (उपन्यास)   -   करतार सिंह दुग्गल    -      पंजाबी से हिन्दी।
2. सुरों के सौदागर (रेखाचित्र)    -   इकबाल माहल        -      पंजाबी से हिन्दी।
3. पवित्र पापी  (उपन्यास)       -   नानक सिंह          -      पंजाबी से हिन्दी।
4. लाल बत्ती   (उपन्यास)      -      बलदेव सिंह       -      पंजाबी से हिन्दी।
5. अध खिला फूल (उपन्यास)    -      नानक सिंह       -       पंजाबी से हिन्दी।
6. कश्ती और बरेता            -      मोहन काहलों     -       पंजाबी से हिन्दी।
7. काबुलीवाले की बंगाली बीवी    -   सुष्मिता बंद्योपाध्याय    –   बांगला से हिन्दी।
8. तालिबान अफ़गान और मैं     -   सुष्मिता बंद्योपाध्याय    –   बांगला से हिन्दी।
9. एक अक्षर भी झूठा नहीं       -  सुष्मिता बंद्योपाध्याय     –   बांगला से हिन्दी।
10. सत्ताइस दिन तितली के (काव्य संग्रह)  – सुव्रतो दास       -   बांगला से हिन्दी।
11. गोधूलि गीत  (उपन्यास)    -     समीरण गुहा           -   बांगला से हिन्दी।
12. दहकते अंगारे (नाटक)      –     रिफ़त शमीम           –   उर्दू से हिन्दी।
13. ढिंबरी टाइट  ( कथा संग्रह)  –     तेजेंद्र शर्मा            –    हिन्दी से पंजाबी।

प्रकाशनाधीन (प्रेस में) –

1. आरती (काव्य संग्रह)          – शिव बटालवी       –   पंजाबी से बांगला में लिप्यांतरण।
2. हवा, हवा हूँ मैं   (उपन्यास)    – दलीप कौर टिवाणा  –   पंजाबी  से हिन्दी।
  3. गाथा तिस्ता पार दी (वृतांत्मक) –  देवेश राय         –   बांगला से पंजाबी।