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बुधवार, अक्टूबर 30, 2024

कवि कुशेश्वर की कविताएँ




दोस्तो, संस्कृति सरोकार के इस मंच पर इस बार प्रस्तुत हैं,


कवि कुशेश्वर की कविताएँ




(1)



आओ बंधु !

आओ बंधु
हाथ मिलाएं
सुलगाएं हाथों की ठंडक
होठों पे सूरज ले आएं
तन से मिला लें तन
मौसम फागुन हो जाए
नैनों से मिला लें नैन
मन जामुन हो जाए
हम दोनों को छूकर
गुज़रे जो समीर
हर घर के आँगन को
कर दे आम की बगिया
गली-गली में नाचे मोर
सुबह-सबेरे देखें मंजरी
शाम का टपके आम
आओ बंधु, हाथ मिलाएं
सुलगाएं हाथों की ठंडक।



(2)

गड़े मुर्दे


गड़े मुर्दे
नए और पुराने
उखाड़े जा रहे हैं फिर से।

पुरातत्ववेत्ता का मानना है
मुर्दों पर मिली चादर की उम्र से
तय की जा सकेगी स्वर्ग की दूरी
धरती पर चाहे जितने
जैसे मतभेद हों
आकाश और स्वर्ग के मामले में
‘आवाज़ दो हम एक हैं।’


खुद को मुर्दों से जोड़ने की ललक
हर दरवाज़े पर देखी जाती है
इस घोषणा-पत्र के साथ -
‘एक क़ब्र हमारे आँगन में भी है
जहाँ मुर्दे की तलाश जारी है।’

कुछ लोग
मकान की नींव में मिली राख लिए
पंक्तिबद्ध खड़े हैं प्रयोगशाला के सामने
शायद किसी मुर्दे का जीवाणु मिल जाए।


कुछ लोग
असहायों को ज़िंदा दफ़्न करने में जुटे हैं
कि आने वाले कल में
वे उखाड़ सकें गड़े मुर्दे।




(3)

लहराने का कारण

झंडे
बहुत ऊँचे होकर
इसलिए लहराते हैं
क्योंकि हवाओं की शह मिलती है
और डंडे का सहारा पाते हैं।



(4)

आईने का सच

लोग कहते हैं -
आईना सच बोलता है
मगर यह भूल जाते है्
कि वह बाएं को दायां
और दाएं को बायां दिखाता है।



(5)

अछूत


वह जब भी मुझसे मिलता
कंधों पर उसके होता
खुशियों से भरा हिमालय
ललाट पर होता नालन्दा का सूरज
होठों पर होती
गंगा-जमुना की अमर कहानी
बड़े जतन से दिखलाता वह
एक हाथ में इतिहास
दूसरे में भूगोल का मेला
वह था मानता
मैं हूँ उसका ऐसा साथी
जो भूगोल से बाहर निकल
रच रहा था नई दुनिया का विश्वास
किंतु अचानक एक दिन न जाने कैसे
फटे-पुराने शब्द-कोश से
एक शब्द छिटक कर कहीं आ गिरा
वह ठिठक गया बंद घड़ी सा
गिर गया हिमालय उसके कंधे से
गंगा-जमुना में आ गई बाढ़
टूटे कई किनारे
डूब गया था उसका सूरज
सागर में उठे झाग की हद तक
वह फेनिल हो उठा था
आख़िर था वह कौन सा शब्द
जो सूरज, चाँद, तारों के पास नहीं था
समुद्र, नदी, झरने, पेड़-पौधों को
छू तक नहीं रहा था
न फूलों के रंग, न हवाओं के संग
आख़िर उस ‘अछूत’ शब्द में
ऐसा क्या था जो आकाश से टपका नहीं
ज़मीन से उगा नहीं
मेरे चेहरे पर भी लिखा नहीं था
मगर वह उसे लगातार पढ़ रहा था !

परिचय

जन्म : 30 जनवरी 1949 दरभंगा के खैरा गाँव में। स्नातक डिग्री के बाद आकाशवाणी कोलकाता में सामयिक उद्घोषक एवं एफ. एम. प्रेजेंटर तथा साहित्य एवं सांस्कृतिक रेडियो मासिक मैगज़ीन का संकलन व संपादन। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं एवं कविता, कहानी, नाटक प्रकाशित।



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शुक्रवार, जून 01, 2012

हिन्दी पत्रकारिता के 186 वर्ष : एक सिंहावलोकन


हिन्दी पत्रकारिता के 186 वर्ष : एक सिंहावलोकन




स्वागत भाषण - विश्मभर नेवर
महानगर के छपते-छपते पत्रसमूह द्वारा हिन्दी पत्रकारिता दिवस के उपलक्ष्य में 30 मई की शाम हिन्दी पत्रकारिता के 186 वर्ष : एक सिंहावलोकन विषय पर कार्यक्रम का आयोजन भारतीय भाषा परिषद प्रेक्षगृह में किया। आरंभ में कार्यक्रम के मुख्य सूत्रधार विश्वंभर नेवर ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया और हिन्दी समाचार पत्रों व पत्रकारिता के संघर्षों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज पाठकों के पास चॉयस है कि वे कौन सा अखबार पढ़ें। आज शहर से कई  समाचार पत्रों का प्रकाशन सुखद अनूभूति देता है, अखबारों का परिवार समृद्ध हो रहा है, इस पर कोई परिवार नियोजन लागू नहीं है। 


स्मृति चिहन् प्राप्त करते डॉ. राम खिलावन त्रिपाठी रुक्म
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था, पांच वरिष्ठ पत्रकारों का अभिनंदन, जिनमें शामिल थे सुदामा प्रसाद सिंह, मोहम्मद इसराइल अंसारी, डॉ. संतन कुमार पांडेय, डॉ. राम खिलावन त्रिपाठी 'रुक्म' एवं रामगोपाल खेतान।  


रामगोपाल खेतान को सम्मानित करते न्य्याधी

उन्हें क्रमश:उत्तरीय, शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया व स्मृति चिहन् प्रदान किए गए।सभी पत्रकारों ने अपने-अपने समय की चुनौतियों का संक्षेप में उल्लेख किया। 




इस मौके पर बी. एम. बिरला हार्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा इन्हें हेल्थ कार्ड भी प्रदान किए गए।






Add ca डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र  ption
डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और हिन्दी पत्रकारिता के सफर पर व्यापक प्रकाश डाला। उन्होंने कहा  कि यह गर्व की बात है कि कोलकाता अहिन्दी महानगर होते हुए भी हिन्दी का सबसे बड़ा केन्द्र रहा। शिव प्रसाद मिश्र और बाल मुकुन्द गुप्त कोलकाता के प्रखर पत्रकार रहे हैं।





Add c कल्याण ज्योति सेनगुप्ता।  aption
बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे, कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कल्याण ज्योति सेनगुप्ता। उन्होंने कहा कि आज समाचारपत्रों के स्तर में गिरावट आई है। पत्रों पर व्यवसायिकता का प्रभाव बड़ी तेज़ी से पड़ा है। आज आई. पी. एल के समाचार प्रमुखता से प्रथम पृष्ठ पर स्थान पा रहे हैं।  
  
अंत में धन्य़वाद ज्ञापित किया छपते-छपते के प्रबंध संपादक विपिन नेवर ने । कार्यक्रम का कुशल संचालन किया राजप्रभा दासानी ने।प्रदेश की मुख्यमंत्री व राज्यपाल द्वारा इस मौके पर विशेष संदेश भी प्रेषित किए गए थे। साहित्य, पत्रकारिता, सामाजिक सरोकार व अन्य क्षेत्रों से जुड़े व्यक्तित्व भारी संख्या में उपस्थित थे।                                                                                                                                                                                    



दर्शक दीर्घा


प्रस्तुति व तस्वीरें - नीलम शर्मा 'अंशु'


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बुधवार, मई 30, 2012

तिरंगा काव्य संगम की मासिक काव्य गोष्ठी


श्री विशम्भर नेवर अध्यक्षीय वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए। 

तिरंगा काव्य संगम की मासिक काव्य गोष्ठी दिनांक 25 मई, 2012, शु्क्रवार की शाम राजा राम मोहन राय पुस्तकालय, राजा बाजार (कोलकाता) में संपन्न हुई। कार्य़क्रम की अध्क्षता छपते-छपते समाचार पत्र व ताज़ा टी वी के प्रधान संपादक विश्वंभर नेवर ने की। बतौर अतिथि उपस्थित थे शहर के जाने-माने उस्ताद शायर हलीम साबिर और हिन्दी के प्रख्यात गीतकार योगेंद्र शुक्ल सुमन।  हिन्दी कवियो में शिरकत करने वालों में थे भानू प्रताप त्रिपाठी निराला, गिरधर राय, रवि प्रताप सिंह, प्रदीप कुमार धानुक, नंदलाल रोशन, नीलम शर्मा अंशु’, आरती सिंह। शायरों में शामिल थे  अनवर बाराबंकी, शमीम सागर, युसुफ अख्तर, शम्स इफ्तखारी, मुजतर इफ्तखारी, अशरफ गाजीपुरी, अंबर सिद्दीकी, शाहिद नूर व नजमा नूर। कार्यक्रम का संयोजन व संचालन प्रो. अगम शर्मा ने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में किया। 


बाएं से जनाब हलीम साबिर, श्री विश्मभर नेवल, श्री योगेन्द्र शुक्ल 'सुमन' जी।

प्रस्तुति व छायांकन - नीलम अंशु

सोमवार, अप्रैल 30, 2012

सिख नारी मंच कोलकाता द्वारा बैसाखी स्पेशल सांस्कृतिक संध्या का आयोज


सिख नारी मंच कोलकाता द्वारा
 बैसाखी स्पेशल सांस्कृतिक संध्या का आयोजन।


सिख नारी मंच कोलकाता ने 29 अप्रैल की शाम स्थानीय भारतीय भाषा परिषद सभागार में बैसाखी के उपलक्ष्य में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस मौके पर पंजाबी भाषी बच्चों ने विभिन्न विधाओं द्वारा अपनी बहुमुखी सांस्कृतिक व कलात्मक प्रतिभा का परिचय दिया।  पंजाबी लोकगीत, लोक नृ्त्य गिद्धे और भांगड़े की प्रस्तुतियां भी की गईं। नारी मंच के संस्थापक स. नरिंदर सिंह द्वारा लिखित पंजाबी नाटक बजुरगां दा सम्मान  का भी मंचन किया गया। नाटक में पुरुष कलाकारों के किरदार भी महिलाओं द्वारा निभाए गए। कुल मिलाकर एक बेहतरीन शाम रही।





मंगलवार, अप्रैल 17, 2012

काशीपुर अंबेदकर युवा संघ द्वारा अंबेदकर जयंती का आयोजन


काशीपुर अंबेदकर युवा संघ द्वारा 
अंबेदकर जयंती का आयोजन





विशिष्ट अतिथि रवि प्रताप सिंह का संबोधन
 काशीपुर  अंबेदकर युवा संघ द्वारा भारतीय संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेदकर की 121 वीं जयंती के अवसर पर 15 अप्रैल की शाम एक भव्य  सांस्कृतिक  कार्यक्रम का आयोजन किया। इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित थे युवा कवि व शायर, मंच व टी.वी. कलाकार रवि प्रताप सिंह। उन्होंने डॉ. अंबेदकर के जीवन के विविध पहलुओं पर एक सारगर्भित वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि समाज के समर्थ और संपन्न तबके के लोगों को चाहिए कि वे खुद आरक्षण की सुविधाओं के लाभ न लेकर आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के लिए सुविधाएं उपलब्ध करवाएं ताकि वे लोग भी समान स्तर पर आकर कुछ कर सकें। 


मुख्य अतिथि सुश्री नीलम शर्मा 'अंशु' का संबोधन।
इस मौके पर बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थीं एफ. एम. रेनबो की रेडियो जॉकी व साहित्यिक अनुवादक सुश्री नीलम शर्मा 'अंशु' । ্ उन्होंने कहा कि दलित या पिछड़े वर्ग के लिए ही नहीं बल्कि हर तबके के लोगों के लिए डॉ. अंबेदकर अनुकरणीय हैं। उन्होंने समाज व देश को नई दिशा दी। उनके दिखाए मार्ग पर चलकर, उनका अनुकरण करते हुए जीवन पथ पर अग्रसर होते हुए एक अच्छा इन्सान बनने की कोशिश करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आप खुद को इतना सक्षम बना लें कि आपको किसी प्रकार के आरक्षण की आवश्यकता ही न पड़े। 

 कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों का पुष्प गुच्छ द्वारा विधिवत् स्वागत किया गया। क्लब के अध्यक्ष अर्जुन प्रसाद ने  अतिथियों का स्वागत किया। इस मौके पर महासचिव तथा अन्य पदधारियों सहित बड़ी भारी संख्या में गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत्  गीत-संगीत की प्रस्तुति भी की गई। 

कार्यक्रम की झल्कियां






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कोलकाता की एक शाम कवियों-शायरों के ना

 कोलकाता की एक शाम कवियों-शायरों के नाम.....

अपने आंसू की धार मुझे दे दो
मैं उससे बड़ी मुस्कान तुम्हें दे दूंगा।




महानगर कोलकाता के औद्योगिक अंचल काशीपुर मेंबैसवारा सहित्य परिषदद्वारा 15 अप्रैल की शामकवि सम्मेलनका आयोजन किया गया। कार्यक्रम मेंहिन्दी-उर्दू के कवियों व शायरों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं।अध्यक्षतालब्ध-प्रतिष्ठित वरिष्ठ कवि डॉ. अरुण प्रकाश अवस्थीनेकी । हिन्दी में भानु प्रताप त्रिपाठी 'सरल', शंभु जालान निराला,  प्रो. अगम शर्मारवि प्रताप सिंह,  डॉ. गिरधर राय,  जगेश तिवारी,  विजय कुमार चौबेप्रकाश सिंह सावननीलम शर्मा 'अंशु'   तथा उर्दू में अनवर बाराबंकीमुमताज मुजफ्फरपुरीबदूद आलम आफ़ाकीनश्तर शहूदीइरशाद मज़हरीआदि ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। कार्यक्रम के आरंभ में भानु प्रताप सरल ने सरस्वति वंदना व बदूद आलम आफ़ाक़ी ने नातिया क़लाम पेश किया। शहर के जाने-माने साहित्य- प्रेमी दुर्गा दत्त सिंह के संयोजन में कार्यक्रम काफ़ी सफल रहा। इस मौके पर भारी संख्या में साहित्यप्रेमी व बुद्धिजीवी श्रोताओं ने साहित्यिक रसधार का आनंद उठाया।  कुशल संचालन अपने चिर-परिचित अंदाज़ में प्रो. अगम शर्मा ने किया।

शायर बदूद आलम आफ़ाक़ी की बानगी देखें -

किस्मत की लकीरों को बदलते नहीं देखा
पूरब से कभी चांद निकलते नहीं देखा
एक खेल है इस दौर में बहुओं को जलाना
दूल्हों को कभी किसी ने जलते नहीं देखा।

मुमताज मुजफ्फरपुरी -

ये कह रही थी मौत सिकंदर के सामने
चलता है किसका ज़ोर मुक्द्दर के सामने
हमसाए सारे मेरे तमाशाई बन गए
घर मेरा जल रहा था समंदर के सामने।

नीलम शर्मा 'अंशु'  ने कुछ ऐसी बानगी श्रोताओं के समक्ष रखी -  

     तू किसी को ख़्वाब की मानिंद
अपनी नींदों में रखे ये रज़ा है तेरी
पर यहाँ किस कंबख्त को नींद आती है?
अरे, तुझसे भले तो ये अश्क हैं
कभी मुझसे जुदा जो नहीं होते।

अध्यक्ष डॉ. अवस्थी फ़रमाते हैं -  

अपने आँसू की धार मुझे दे दो
मैं उससे बड़ी मुस्कान तुम्हें दे दूंगा।

दूसरी तरफ  प्रो. अगम शर्मा  अपनी कविता में कुछ यूं कहते हैं - 


हर तरह से तशनगी का हल निकलता है
जल कहोपानी कहो क्या फर्क पड़ता है।



और वहीं गज़ल के मतले  में वे ये कहते नज़र आते हैं - 

तेज़ हवाओं ने कितने तूफान उठाएं हैं
फिर भी हमने हर हालत में दीये जलाए हैं। 

और  रवि प्रताप सिंह की कविता की पंक्तियां कुछ ऐसा कहती हैं -

रज्जोकमलाबिमलामुनिया सारी सखियां ससुराल गईं
अब झूला वो कैसे झूलें जो बिरहा की डाल पर डाल गईं
उस अकेली अल्हड़ के उर में जब कसक उभरती है
तब कोई कविता बनती है।

वहीं तरन्नुम में पेश की गई उनकी ग़ज़ल के शेर कुछ ऐसी रंगत बिखेरते हैं - 

कोशिश हज़ार करके भी रौशन न हुआ हो
मुमकिन है वो चिराग हवाओं ने छुआ हो।

रखता नहीं वो फूल किताबों में मैं कभी
जिस फूल को कभी किसी भंवरे ने छुआ हो। 




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सोमवार, अप्रैल 02, 2012

न इतना हलवा बन कि चट कर जाएं भूखे, न इतना कड़वा बन कि जो चखे वो थूके..









रविवार, मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम जी का जन्म दिन और राममय जीवन गुज़ारने वाले आचार्य विष्णुकांत शास्त्री जी की पुण्यतिथि। कल की शाम श्री कुमार सभा पुस्तकालय द्वारा शास्त्री जी की स्मृतियों के नाम रही। कार्यक्रम के  आरंभ में डॉ. ममता त्रिवेदी ने रामवंदना प्रस्तुत की।




शास्त्री जी से  जुड़ी स्मृतियों और उनके व्यक्तित्व व कृतित्व के विविध पहुलओं को  सांझा करते हुए पुस्तकालय के अध्यक्ष  डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कहा कि आचार्य शास्त्री जी ने अपने विद्यार्थियों को अच्छे संस्कार दिए। उन्होंने कहा कि उन्होंने क्रोध को त्यागने के लिए बहुत ही सुंदर उद्धरण देकर समझाया कि 


"न इतना हलवा बन कि चट कर जाएं भूखे                                                              
न इतना कड़वा बन कि जो चखे वो थूके।"

कोलकाता ट्रामवेज कंपनी के चेयरमैन और राजनेता शांति लाल जैन ने कहा कि वे समझाया करते थे कि राजनेताओँ को फिजूलखर्ची से बचना चाहिए। उन्होंने हमेशा साधारण जीवन-यापन किया। श्री जैन ने पुस्तकालय समिति को सुझाव दिया कि शास्त्री जी के नाम एक डाक टिकट जारी किए जाने का  प्रस्ताव केन्द्र के समक्ष रखा जाना चाहिए।

इस अवसर पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार और प्रभात वार्ता के संपादक राज मिठौलिया ने कहा कि शास्त्री जी के सांस्कृतिक  एवं साहित्यक अवदान का सही मूल्यांकन नहीं हो पाया। उन्होंने उन पर शोध की व्यवस्था किए जाने का सुझाव रखा ताकि भावी पीढ़ी को मार्गदर्शन मिल सके।

अपने छात्र जीवन की स्मृतियों के अनमोल पहलुओं को याद करते हुए कोलकाता विश्वविद्यालय की हिन्दी की विभागाध्यक्षा डॉ.राजश्री शुक्ला ने कहा कि मैं अध्यापन कार्य के माध्यम से उनके द्वारा  सौंपी गई विरासत को पूरी निष्ठा से आगे बढ़ाने में तत्पर  हूं।


बनारस से पधारे रवीन्द्र साहित्य मर्मज्ञ अमिताभ भट्टाचार्य ने कहा कि कुछ लोग बुद्धिजीवी होते हैं, बुद्धि उनकी आजीविक होती है लेकिन जिन लोगों के लिए बुद्धि है जीवन,ऐसे व्यक्तित्वों में है आचार्य विष्णुकांत शास्त्री।


वरिष्ठ कवि ध्रुवदेव मिश्र पाषाण ने कहा कि मर्यादा टूटेगी तो महाभारत होगा और मर्यादा का हरण होगा तो लंकादहन होगा लेकिन शास्त्री जी के संस्कारों में कट्टरता नहीं थी, दृढ़ता अवश्य थी।  शास्त्री जी को कविता से ऊर्जा मिलती थी, जो कविता से ऊर्जा प्राप्त करेगा वही धरती का 'लायक' बेटा होगा। वे धरती के 'लायक' बेटे थे। वे अध्यापक की भूमिका  को राजनेता को से ऊपर मानते थे। वे भारतीय संस्कृति के गोमुख के प्रदूषित नहीं होने देना चाहते थे। 

कार्यक्रम के अध्यक्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश गिरधर मालवीय ने कहा कि जब मैं उनसे मिल, मुझ लगा कि मैं एक साधु के पास, संत के पास, एक आदर्श के पास पहुंचा हूं। ऐसा अजताशत्रु ढूंढना मुश्किल है। वे राममय थे। 




धन्यवाद ज्ञापन करते हुए जुगलकिशोर जैथलिया ने कहा कि श्री कुमारसभा  पुस्तकालय की कोशिश होगी कि शास्त्री जी के अप्रकाशित व्याख्यानों को प्रकाशित कर पुस्तक खंडों में सहेजा जाए।


पुस्तकालय की साहित्य मंत्री श्रीमती दुर्गा व्यास ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया। 


दर्शक दीर्घा 

 इस अवसर पर सभी अतिथि वक्ताओं को पुस्तकालय की ओर से अरुण मल्लावत, कवि व शायर रवि प्रताप सिंह, तारा दुग्गड़, कवि गिरधर राय और ममता त्रिवेदी ने शास्त्री जी के गीता पर आधारित पुस्तक खंडों के सेट भेंट किए।
छायांकन व प्रस्तुति - नीलम शर्मा 'अंशु'

रविवार, अप्रैल 01, 2012

आचार्य विष्णुकांत शास्त्री की सातवीं पु्ण्यतिथि


राम में ही रम गया था, दिव्य जिनका मन....

" सौंप जब तुमको दिया  इस ज़िंदगी का भार रघुवर,
तब मुझे क्या सोचना है, जीत हो या हार रघुवर,
सिर्फ़ इतनी शक्ति मुझको दो कि मैं अंत:करण से
कर सकूं स्वीकार सब कुछ, जो तुम्हें स्वीकार रघुवर।"



सुप्रितष्ठित  साहित्यकार , छात्रवत्सल प्राध्यापक, सहृदय कवि, निस्पृह समाजसेवी, निष्कलंक राजनेता, सम्मोहक वक्ता, भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्म के गहन अध्येता, सहजता एवं शालीनता की साक्षात् मूर्ति आचार्य विष्णुकांत शास्त्री ने बहुआयामी सक्रिय जीवन यात्रा में विविध क्षेत्रों को समृद्ध किया। शिक्षा, साहित्य, समाज, अध्यात्म, राजनीति सभी क्षेत्र उनकी गरिमामयी उपस्थिति से महिमामंडित हुए। 

उनका सान्निध्य हर किसी को हर पल समृद्ध करता रहा है। विद्यार्थियों तथा अनुज पीढ़ी के लिए अनवरत स्नेहवृष्टि करने वाली उनकी वात्सल्यपूरित दृष्टि तथा आशीर्वाद प्रदान करने वाली उनकी उत्साहवर्धक वाणी अविस्मरणीय है। 


आचार्य विष्णुकांत शास्त्री के व्यक्तित्व की पहचान के प्रमुख बिंदु रहे हैं : काव्य के प्रति आत्मीय अनुराग, राष्ट्र एवं राष्ट्रभाषा के प्रति अपार प्रेम, स्वीकृत कार्य के प्रति पूर्ण समर्पण तथा अपने आराध्य भगवान, श्रीराम के पर्ति अनन्य निष्ठा। दायित्व चाहे स्वेच्छा से स्वीकार किया गया हो या दबाववश उन्हें सौंपा गया हो, ग्रहण करने के बाद उस काम को प्रभु द्वारा प्रदत्त मानकर पूरी निष्ठा के साथ जुट जाना शास्त्री के स्वभाव का अंग रहा है उनकी स्वरचित पंक्तियां हैं - 

"जो काम प्रुभु ने दिया, नतमस्तक उसे लिया।
जितना कर सका किया, इस तरह अब तक जिया।।"


और यह भी -


"तुम्हीं काम देते हो स्वामी, तुम्हीं उसे पूरा करते हो।"




" मृत्यु, तुम्हारा मुझको क्या भय जब आना हो आओ,
जर्जर वस्त्र बदल कर मुझको नया वस्त्र पहनाओ।
झेल चुका ये नाते-रिश्ते, सुख-दु:ख का छलनाएं
राम मिलन संभव हो जिसमें, ऐसा रूप दिखाओ।।"

(साभार - डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी के आलेख से)


संस्कृति सरोकार परिवार की ओर से उन्हें शत् शत् नमन।


प्रस्तुति - नीलम शर्मा 'अंशु'

बुधवार, मार्च 07, 2012

बरसुआ लौह खदान में हास्य कवि सम्मेलन।

- वीरानों के साथ ज़िंदगी मेरी  तरह बसर करिए -

सेल के अधिकारियों के साथ कविगण

स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमटेड, रॉ मैटिरियल्स डिवीजन कोलकाता के सहयोग से  बरसुआ लौह खदान (उड़ीसा) ने अपने इस्पात हाई स्कूल के विशाल मैदान में होली के उपलक्ष्य में पहली बार अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया। 

दीप प्रज्जवलित करते महाप्रबंधक एच. बारा
कार्यक्रम का शुभारंभ बरसुआ लौह खदान के महाप्रबंधक श्री एच. बारा द्वारा दीप प्रज्जवलन से हुआ। सेल के अधिकारी जे. पी. मिश्रा ने कवियों का स्वागत किया।


सरस्वती वंदना प्रस्तुत करते अजय शंकर मिश्र



रावेल पुष्प के काव्यमयी संचालन में हुए इस कवि सम्मेलन की शुरूआत 
सेल के ही अजय शंकर मिश्र की 
सरस्वती वंदना से हुई।

रचना पाठ करते डॉ. मधुसूदन साहा



देश के प्रमुख नवगीतकार एवं ओड़िया साहित्य से अनेक रचनाओं के अनुवादक  
डॉ. मधसुदन साहा ने जीवन के विविध रंगों 
पर कई बेजोड़ मुक्तक सुनाए।




ओजपूर्ण रचनाएं पढ़ते रवि प्रताप सिंह
      

वहीं गीतों और ग़ज़लों के समर्थ युवा कवि 
रवि प्रताप सिंह ने अपने ओजपूर्ण गीतों 
से समां बांधा - 
सन्नाटे भी बोल उठेंगे, 
दिल से बात अगर करिए
वीरानों के साथ ज़िंदगी मेरे साथ बसर करिए ।



हास्य-व्यंग्य से सराबोर करते उपेन्द्र मिश्र
देर रात तक चले कवि सम्मेलन में जहां
मंचीय  नोंक-झोंक पर श्रोता मुस्कुराते रहे 
वहीं उपेन्द्र मिश्र की हास्य-व्यंग्यात्मक
रचनाओं पर ठहाके भी लगे - 

होली के रंगों का कहर हमें युं उठाना पड़ा है
अपना बच्चा ढूंढने के लिए
 हमें पांच बच्चों को नहलाना पड़ा है।



गीतकार नवीन प्रजापति ने जहां तरन्नुम में अपने गीतों से श्रोताओं को प्रेम की रसधार में भिगोया  वहीं व्यंग्यकार रावेल पुष्प ने आज की राजनीति और सत्ता पर काबिज भ्रष्ट नेताओं पर करारा व्यंग्य किया -         
रचना प्रस्तुति - रावेल पुष्प

वहां एक से बढ़कर एक
उम्दा कोटि के जल्लाद हैं
जो नित नए भेस बदलकर आते हैं
और जनता की उम्मीदों को
  हर रोज सरेआम फांसी पर चढ़ाते हैं।

स्थानीय कवि बड़ाराम कटारिया के काव्य पाठ से समापन हुआ। 


कोलकाता सेल के हिन्दी अधिकारी कैलाश नाथ यादव की पहल एवं लौह खदानों के मुख्य कार्यपालक निदेशक मानवेन्द्र नाथ राय के मार्गदर्शन में हुए इस यादगार कवि सम्मेलन के श्रोताओं ने होली के मौके पर सेल द्वारा दिया अनमोल तोहफा करार दिया। 

राउरकेला(उड़ीसा) से पहाड़ों के बीच मीलों पथरीले रास्ते एवं घने जंगल के बीच स्थित खदान में आयोजित इस कार्यक्रम की सफलता में  राजेश निगम, टी. के. घोष, मानवेन्द्र मिश्र, बुलु दिग्गल की सक्रिय भागीदारी रही।


कवियों का सम्मान




प्रकृति के सान्निध्य में कविगण।


आलेखन - रावेल पुष्प, छायांकन - 
बुलु दिग्गल

साज-सज्जा व प्रस्तुति - नीलम शर्मा 'अंशु"