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मंगलवार, जुलाई 27, 2010

श्री रमेश दवंडे ‘परीशां’ जी की कलम

दोस्तो, संस्कृति सरोकार के इस मंच पर इस बार प्रस्तुत हैं श्री रमेश दवंडे ‘परीशां’ जी की कलम का हुनर। परीशां साहब, आयकर विभाग, नागपुर में उप आयकर आयुक्त हैं लेकिन सरकारी अफ़सर होने के साथ-साथ उनमें एक अज़ीम फ़नकार और शायर भी बसता है।
प्रस्तुत हैं उनकी तीन ग़ज़लें और एक गीत।


(1)



इश्क-ए-हक़ीकी
मयकदे को ही जब से बनाया है घर
कितनी रंगी हुई तब से शाम-ओ-सहर
मयकशों में जहाँ फ़र्क़ होता नहीं
चाहे मुफ़्लिस हो कोई, या हो अहल-ए-ज़र
मुफ़्त करता है तक़्सीम मय रात-दिन
और रखता भी है साक़ी सब पर नज़र
मय तो ऐसी पिलाता है साक़ी मेरा
कैफ़ जिसका न उतरे कभी उम्र भर
लुत्फ है और ही मयकशी का यहाँ
पी ले जो इक दफ़ा फिर न छोड़े ये दर
रोज़ पीते हैं मयकश यहाँ इस क़दर
रंज-ओ-ग़म से परे, ख़ौफ़ से बेखबर
ये है वो मयक़दा, सुन 'परीशां' यहाँ
बारिशें मय की होती हैं आठों पहर।


( 2 )


जो है मौजूद इन ........


जो है मौजूद इन फ़ज़ाओं में
ढूंढते हो उसे ख़लाओं में
वो चला जाएगा तेरी जानिब
गर असर है तेरी सदाओं में
रक्स गुंचे यूं ही नहीं करते
कुछ तो है राज़ इन हवाओं में

जब दवाएं हो बेअसर यारो
तो भरोसा रखो दुआओं में
दाग़ छुपते नहीं छुपाने से
चाँद छुपता रहे घटाओं में
कल गुनहगार था ज़माने का
आज बैठा हे वो ख़ुदाओं में
वो करम गर करे ‘परीशां’ तो
क्यों खिलेंगे न गुल खिज़ाओं में ।




( 3 )


उफ़ वो काफ़िर........


उफ़ वो काफ़िर शबाब का आलम
कहर उस पर हिजाब का आलम
तेरे कूचे से वे मेरा जाना
और तेरे नक़ाब का आलम
बर्ग-ए-गुल की तरह बदन लेकिन
आफ़ताबी अताब का आलम

लब तो आब-ए-हयात के धारे
और नज़र में शराब का आलम
वो शबिस्तां में प्यार की बातें
और सवालो-जवाब का आलम
तेरी फ़ुर्क़त में जी रहे लेकिन
लेकिन पूछ मत इज़्तिराब का आलम
क्या हसीं दौर था ‘परीशां’ वो
हर घड़ी मस्त-ए-ख़्वाब का आलम।



( 4 )

कुछ तेरी नज़र की .......



कुछ तेरी नज़र की जादूगरी
कुछ दिल का मेरे दीवानपन
      उल्फ़त की कलियां खिलने लगीं
      और झूम रहा ये सारा चमन.......
कब रात कोई ऐसी थी जवां
 कब नूर सितारों में यूं था
कब चाल शराबी चाँद की थी
कब चूर नशे में था ये गगन
कुछ तेरी नज़र की जादूगरी......1


ये मस्त फ़ज़ा महका आलम
मदमाती हवा, दिलकश मौसम
सब पूछ रहे हैं तुम को यहाँ
कब आएगी वो जान-ए-चमन
 कुछ तेरी नज़र की जादूगरी.....2

आई हो मगर क्यों रूठी हो
यूं चुप न रहो कुछ तो बोलो
कुछ भूल हुई हो मुझसे अगर
तो माफ़ करो मेरे दिल की लगन
कुछ तेरी नज़र की जादूगरी......
.3

 

* इशक-ए-हक़ीकी – ईश्वर भक्ति/प्रेम
मयक़दा – मदिरालय (यहाँ पूजा स्थल के अर्थ में)
साक़ी – पिलानेवाला (यहाँ ईश्वर)
अहल-ए-ज़र – धनवान, कैफ़ –
नशा
आफ़ताबी – सूरज की तरह तेज, अताब – गुस्सा, क्रोध
बर्ग-ए-गुल - पंखुड़ी, आब-ए-हयात – अमृत
शबिस्ता – शयनकक्ष, फ़ुर्क़त –
विरह
नूर – चमक, फ़ज़ा – वातावरण

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