तिरंगा काव्य संगम की काव्य गोष्ठी।
राम कुमार सिंह, योगेन्द्र शुक्ल सुमन ,पथिक जौनपुरी |
27 जुलाई, शुक्रवार की शाम महानगर कोलकाता के राजा राममोहन
राय पुस्तकालय, राजा बाजार के तिरंगा काव्य संगम द्वारा एक काव्य गोष्ठी का आयोजन
किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता की वरिष्ट कवि योगेन्द्र शुक्ल सुमन ने। बतौर
विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे शायर पथिक जौनपुरी। प्रधान अतिथि के तौर पर गोष्ठी की
शोभा बढ़ाई समाजसेवी राम कुमार सिंह ने। दिनेश धानुका द्वारा प्रस्तुत सरस्वति
वंदना कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। जीवन सिंह ने ‘अब क्या बाकी है’
शीर्षक से कविता के साथ-साथ एक भोजपुरी गीत भी प्रस्तुत किया। आरती सिंह ने ‘दहेज’ पर अपनी कविता के माध्यम से
अभिव्यक्ति दी। रूपा बैनर्जी ने बांगला व हिन्दी में कविता सुनाई। रवि प्रताप सिंह
ने अपनी रचना ‘सब
कहते हैं यह पावस है’ के माध्यम से पावस की अनुभूति को अपने चिर-परिचित अंदाज़
में बखूबी स्वर दिया। इसके अतिरिक्त नीलम शर्मा ‘अंशु’, प्रदीप धानुका, चंद्रिका प्रसाद अनुरागी, जवाहर लाल शाह,
प्रो. हीरा लाल जायसवाल, विजय कुमार चौबे आदि ने भी शिरकत की। प्रो. अगम शर्मा ने अपनी रचना ‘कलम’ और योगेन्द्र शुक्ल सुमन ने
गीत की प्रस्तुति द्वारा समां बांधा।
कुछ उल्लेखनीय रचनाओं की बानगी देखे :-
एक सुंदर सुहाना सफ़र है ज़िंदगी
इसे कभी खोना न देना
यहां फूल खिलाना है
सदा मुस्कुराना है।
(रूपा बैनर्जी)
न सारस के जोड़े दिखते
न काली कोयल कूक रही
न प्रणय वेदना की मारी
चकवी चकवे को खोज रही
न गरजे बादल उमड़-घुमड़
न विरहन का दिल ही हर्षा
सब कहते हैं यह पावस है
कैसा पावस, कैसी वर्षा ?
(रवि प्रताप सिंह)
उड़नछू हो जाएगा सब कुछ
चला जाएगा पहुंच से इतनी दूर
देखना तो दूर आवाज़ तक
सुनने के लिए तरस जाओगे
वक्त फिसल चुका होगा हाथ से रेत सा
चाह कर भी नहीं तय कर पाओगे
फासला सात समंदर का
लांघ कर पारपत्र की दीवारें।
याद करोगे बैठ वीरानों में
क्या खोया, क्या पाया हमने।
(नीलम शर्मा ‘अंशु’)
दादी के हाथ दियासलाई तक
पल भर में माचिस की तीलियों से
जय घोष की तरह प्रकट होती है
लपलपाती हुई लौ
लौ ललकारती है सूर्य को,
चंद्रमा को, तारों को
जैसे मंगल पांडेय ललकार रहा हो
देशवासियों को – डरो नहीं, डरो नहीं।
(चंद्रिका प्रसाद अनुरागी)
जग के सम्मुख प्रस्तुत करता है कलमकार
गीता, कुरान, बाईबल शब्दों के नीलकमल
स्याही की दो बूंदों की है ताकत अबाध
है कलम वक्त के शंकर का तीसरा नेत्र
जो खुल जाए तो अंतरिक्ष दिख जाता है
सम्मुख आते हैं राम, लक्ष्मण के चेहरे
जब कोई तुलसी अपनी कलम उठाता है।
(प्रो. अगम शर्मा)
गैरौं की गुलामी का कफ़न तोड़ कर निकले
आज़ाद परिंदों का आसमां कहां है
और गुरबत में जो बसर कर रहे है लोग
उनसे पूछो हिंदुस्तान कहां है।
(योगेंद्र शुक्ल सुमन)
000000
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें