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शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2014


मलय दा को (मलय साहा) .......श्रद्धांजलि।


"आज ( 3जनवरी, 2014) एफ. एम. रेनबो पर वर्ष 2014 की पहली ड्यूटी थी। प्रोग्राम का एपीसोड था - सिनेमा सिनेमा। हर शाम अलग-अलग विषय होते हैं। प्रोग्राम की समाप्ति पर स्टुडियो से निकल कर ड्यूटी रूम में आने पर ड्यूटी ऑफिसर मलय दा ने बांगला में कहा, खूब भालो होएछे। नीलम शर्मा के जे दिके ई दिए दाओ शेखाने ई "शोना"। (यानी बहुत बढ़िया हुआ। नीलम शर्मा को जिधर भी दे दिया जाए, उधर ही "सोना" (Sona नहीं Gold)। मैंने हँस कर कहा, यानी जिस खांचे में भी डाल दो, हर जगह फिट। उन्होंने कहा - "नहीं, मैं तुम्हारे बारे में तुम्हारी तरह नहीं सोचता। मैं और भी बेहतर सोचता हूँ।" खैर, जो भी हो काम की सराहना हो - काम दूसरों को पसंद आए तो अच्छा लगता है कि मेहनत सफल रही। चलिए साल भर यूं ही अच्छा-अच्छा होता रहे।

फिर आकाशवाणी से निकलते समय द्वार पर देखा दो व्यक्ति मुझसे पहले निकल रहे थे। वे कंट्रोल रूम वाले थे। एक ने मफलर से मुँह-सर लपेट रखा था, मैं पहचान नहीं पाई। उन्होंने ही खुद कहा, अरे हैप्पी न्यु ईयर। फिर हम लोगों ने साथ-साथ रोड क्रॉस की। जिन्होंने विश किया था, अचानक पूछा - आज क्या प्रोग्राम किया। मैंने कहा - सिनेमा सिनेमा। तो उन्होंने कहा, अच्छा उसमें वो कुछ ट्रिब्यूट टाइप का भी हो रहा था वही न। बहुत अच्छा प्रोग्राम हुआ, सचमुच। फिर साथ-साथ चलते रहे रोड पर। मैंने पूछा, आप लोग लोग कहाँ तक जाएंगे, उन्होंने कहा, मेट्रो तक। मैंने कहा, मैं भी मेट्रो स्टेशन ही जाउंगी। मेट्रो में भी जाकर पता चला कि हम तीनों एक ही रूट की ट्रेन पकड़ेंगे और वे मुझसे एक स्टेशन पहले उतरेंगे। कुल मिलाकर आकाशवाणी से लेकर मेट्रो तक 25 मिनटों का अच्छा वक्त गुज़र गया तरह-तरह की बातें करते हुए सफ़र में। 10 मिनट पैदल मार्च के और 15 मिनट ट्रेन के।

आज के प्रोग्राम को मैंने कई हिस्सों में बांट दिया था। पहले हिस्से में 2013 में गुज़री शख्सियतों को श्रद्धांजलि दी। दूसरे हिस्से में 5 सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियां, तीसरे हिस्से में 5 सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, चौथे हिस्से में 2013 में आए नए कलाकार, पाँचवे हिस्से में वर्ष 2014 की शुरूआत में जनवरी में रिलीज होने वाली उल्लेखनीय फ़िल्में। तो इस तरह 7-9 तक दो घंटों के संगीतमयी सफ़र की समाप्ति।"

नहीं पता था कि 3 जनवरी 2014 की यह मेरी ड्यूटी और बात-चीत हमारे ड्यूटी ऑफिसर मलय दा (मलय साहा) के साथ अंतिम साबित होगी। इसके बाद अंदमान ट्रिप पर चले जाने के कारण लौट कर अगली ड्यूटी 21, 23 और 26 को की। पता चला कि मलय दा अस्वस्थ हैं। हार्ट सर्जरी हुई है। इस दौरान उनकी ख़ैरियत जानने के लिए दो-तीन बार फोन किया लेकिन नो रिप्लाई। किसी ने उठाया ही नहीं। अब पाँच फरवरी को प्रो. वाले दिन ड्यूटी ऑफिसर शीला दी ने यूं ही पूछ लिया कि नीलम क्या मलय दा के बारे में कुछ लेटेस्ट जानकारी है। तो मैंने वही जवाब दिया कि फोन lतो नो रिप्लाई होता है हमेशा। उन्होंने भी यही बात कही। गलियारे में ही हमने पाँच-छह मिनटों तक बात की। मैंने उनसे कहा कि अगर आपको लेटेस्ट जानकारी हो तो बताईएगा, उन्हें देखने जाने का मन है। शीला दी ने भी कहा कि तुम भी बताना अगर तुम्हें जानकारी मिले तो। तब कहाँ पता था कि इस वक्त मलय दा अंतिम यात्रा के लिए गहन निद्रा में समा चुके हैं, शायद तभी हमारा मन उस वक्त उन्हें याद कर रहा था। प्रो. के बाद घर आने पर अगली सुबह हमारी पेक्स मिताली जी का एस.एम.एस. मिला इस बारे में। बेहद अफ़सोस हुआ। फिर ऑफिस जाने पर शीला दा का फोन भी आया, तो उन्होंने कहा कि हाँ देखो कल जब हम लोग उनके बारे में बात-चीत कर रहे थे तो उस वक्त वे विदा हो चुके थे और हमें पता भी नहीं था। दिल को दिल से राह होती है, शायद तभी उस वक्त हम लोग उनके बारे में बात कर रहे थे। 
इंतज़ार था कि वे सेहतयाब होकर फिर से ड्यूटी पर लौटेंगे और काम का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। मलय दा 1998 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हो चुके थे। इन दिनों आकाशवाणी से जुड़े हुए थे। बेटा उनका विदेश में इंजीनियर था, पिछले दिनों वे बता रहे थे कि उसने लड़की पसंद कर रखी है, कालीघाट का ही परिवार है, विदेश में उसके साथ ही काम करती है। अगली बार आएगा तो शादी कर देंगे। शायद इसकी मोहलत अभी उन्हें नहीं मिली।
वे मुझे एकमात्र ऐसे शख्स मिले जो प्रो. के बाद बेबाकी से अपनी राय दिया करते थे। उनकी फ्लास्क में चाय रखी रहती। चूँकि मैं चाय कम ही पीती हूँ तो वे प्रो. के बाद पूछा करते - ताहोले तुमी की एकटु चा/कॉफी खाबे। और मैं हामी भर देती। कभी-कभी देर होने के डर से शालीनता से मना भी कर देती कि आज नहीं। वे बेहद हंसमुख इन्सान थे। एक बार उन्होंने मुझसे कहा , जानती हो कि मैंने शीला से (शीला दी) पूछा कि क्या तुमने वो गीत सुना है जो तुम्हारे नाम पर आजकल खूब बजता है। फिर खुद ही हंसकर कहा कि शीला मेरी बात समझ ही नहीं पाई। 
वे पूरे ध्यान से पूरा प्रो. सुनते और शख्सीयत वाले प्रो. के दिन तो कभी-कभी स्टुडियो में आकर भी कहते कि क्या तुम अमुक गीत बजाओगी? (अगर तब तक वह गीत न बजा होता तो)। अगर वह गीत बजना बाकी होता तो मैं कहती कि बजेगा और अगर मेरी सूची में न होता तो मैं कहती, अगर आप कहते हैं तो बजा देती हूँ। कभी-कभी वे बांगला में छपा कोई बढ़िया सा आर्टिकल होता तो पकड़ा कर कहते, तुम्हारे लिए ले आया हूँ। 
क्या पता था कि अंदमान का ट्रिप इन मायनों में भी यादगार बन जाएगा कि लौट कर किसी शख्स से यूं मुलाकात भी नहीं होगी। ख़ैर, देर-सबेर एक दिन सभी को वहाँ जाना है। 5 तारीख की शाम वे हमें अलविदा कह गए। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे और परिवार को दु:ख के इन पलों में सहनशक्ति दे। 

नीलम शर्मा अंशु  (7-02-2014)


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