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सोमवार, मार्च 02, 2015

दो दशकों का सफ़र .........


कोलकाता की नैशनल लाइब्रेरी ने साहित्य से जुड़ने विशेष रूप से बंगाल की माटी में रहते हुए मातृभाषा पंजाबी के साहित्य से जुड़ने का अवसर दिया। शुक्रगुज़ार हूँ कि कोलकाता शहर ने नीलम शर्मा को नीलम शर्मा अंशु बनाया। 21 मार्च को इस कोलकाता शहर में 26 बरसों का सफ़र पूरा हो जाएगा। लगता है जैसे कल की ही बात हो।

जून 2015 में साहित्यिक अनुवाद कार्य से जुड़े मुझे 21 वर्ष पूरे हो जाएंगे। 1994 जून में यह सफ़र शुरू हुआ था। बस छिटपुट कहानियों और आलेखों के अनुवाद से। फिर 1997 में करतार सिंह दुग्गल साहब का उपन्यास पढ़ा, फुल्लां दा साथ। इस उपन्यास ने कुछ ऐसा छाप छोड़ी कि उसे हिंदी में  अनूदित करने का निश्चय किया। अनुवाद के लिए दुग्गल साहब से संपर्क करने पर उन्होंने यह कहते हुए सहमति दे दी कि वैसे तो मैं अपनी रचनाओं के अनुवाद खुद ही करता हूँ परंतु पता नहीं इसकी बारी कब तक आए। तुम करना चाहती हो तो मेरी तरफ से इजाज़त है। अनुवाद कार्य पूर्ण कर प्रकाशन हेतु दुग्गल साहब को ही भेज दिया। चूंकि वे दिल्ली में रहते थे तो प्रकाशकों से संपर्क करने में सुविधा रहेगी उन्हें यह सोचकर। उन्होंने पहले किसी प्रकाशन संस्थान को दिया फिर वापस लिया इस तरह एक दो जगहों पर विलंब होता देख उन्होंने पुन: वापस लेकर इसे अंतत:  शिलालेख प्रकाशन से प्रकाशित करवाया। यह कार्य 2000 में हो पाया। यानी तीन सालों का वक्त प्रकाशन में ही बीत गया। उसके बाद संयोग से ही इकबाल माहल रचित पुस्तक पढ़ी सुरां दे सौदागर तो लगा कि इसे तो हिन्दी में ही होना चाहिए था ताकि उन शख्सीयतों के बारे में सभी तक जानकारी पहुंचे। बस, इसी तरह सिलसिला चल निकला। फिर इसी श्रृंखला में नाम जुड़ा काबुलीवाले की बंगाली बीवी का। अनुवाद हेतु अनुमति के लिए सुष्मिता बंद्योपाध्याय से संपर्क किया। वे एक ही बात पर अड़ी रहीं कि मुझे तीस हज़ार रुपए चाहिए। उन्हें बड़ी मुश्किल से कन्विन्स किया कि पहले आप इजाज़त तो दें प्रकाशक आपको पैसे देगा। ख़ैर एक पुस्तक की बात की थी परंतु राजकमल प्रकाशन ने उनकी अन्य दो पुस्तकों का भी करार कर लिया उनसे। इस तरह काबुली वाले की बंगाली बीवी के बाद तालिबान अफ़गान और मैं, एक अक्षर भी झूठा नहीं  नाम भी इस क्रम में जुड़ गए। काबुलीवाले की बंगाली बीवी 2002 के कोलकाता पुस्तक मेले की हिन्दी पुस्तकों में बेस्ट सेलर रही।

       अब तक 21 वर्षों  के इस सफ़र में पंजाबी और बांगला से हिन्दी में, हिन्दी से पंजाबी, बांगला से पंजाबी आदि यानी कुल मिलाकर 16 पुस्तकों का अनुवाद कर चुकी हूँ जिनमें से 13 प्रकाशित हो चुकी हैं और तीन प्रकाशनीधीन हैं। फुल टाइम केंद्र सरकार की नौकरी करते हुए साथ-साथ शौकिया तौर पर विगत 16-17 वर्षों से एफ. एम. आकाशवाणी पर बतौर रेडियो जॉकी प्रस्तुतियाँ देते हुए कोशिश यही रही कि उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाओं का अनुवाद किया जाए। संख्या पर ध्यान न देकर गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाए। पुस्तकों की संख्या भले ही कम हो परंतु पुस्तकों का चयन अच्छा होना चाहिए। अनुवाद कार्य सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने दिल के सकुन के लिए किया। पैसों के लिए कभी नहीं। सिर्फ अनुवाद करना है इसलिए कोई भी काम हाथ में ले लिया जाए, ऐसा भी नहीं किया। उसी पुस्तक के लिए हाँ कही, जिसके लिए दिल ने रज़ामंदी दी। यानी दिल से उसे एन्जॉए भी किया। पेशेवर तौर पर काम करना स्वीकार नहीं किया कि चलो पारिश्रमिक तो मिलना ही है कुछ भी कर लो। तिस पर भी गद्य में ही मन ज़्यादा रमता है पद्य के मुकाबले।

       बचपन में पिता हमेशा हम बच्चों को पढ़ाई को महत्ता देने की बात कहते। कोर्स से इतर पुस्तकें पढ़ने या रेडियो सुनने तक की इजाज़त नहीं थी, कोर्स की ही किताबें पढ़ने की ताकीद की जाती। यह भी संयोग है कि बचपन में जिन कार्यों की मनाही थी, बाद में बड़े होने पर वही क्षेत्र काम का हिस्सा बना। अफ़सोस है कि ईश्वर ने पिता को इन उपलब्धियों को देखने का मौक़ा ही नहीं दिया। उन्होंने बस अख़बारों और पत्रिकाओं में कहानियों के अनुवाद और आलेख छपते ही देखे सिर्फ तीन-साढ़े तीन साल तक। हाँ, माँ मेरी हर प्रकाशित रचना की पहली पाठक रही हैं। उन्होंने मुझे इस क्षेत्र में हर संभव सपोर्ट दिया।

       

अनूदित पुस्तकों की सूची –

1. फूलों का साथ   (उपन्यास)   -   करतार सिंह दुग्गल    -      पंजाबी से हिन्दी।
2. सुरों के सौदागर (रेखाचित्र)    -   इकबाल माहल        -      पंजाबी से हिन्दी।
3. पवित्र पापी  (उपन्यास)       -   नानक सिंह          -      पंजाबी से हिन्दी।
4. लाल बत्ती   (उपन्यास)      -      बलदेव सिंह       -      पंजाबी से हिन्दी।
5. अध खिला फूल (उपन्यास)    -      नानक सिंह       -       पंजाबी से हिन्दी।
6. कश्ती और बरेता            -      मोहन काहलों     -       पंजाबी से हिन्दी।
7. काबुलीवाले की बंगाली बीवी    -   सुष्मिता बंद्योपाध्याय    –   बांगला से हिन्दी।
8. तालिबान अफ़गान और मैं     -   सुष्मिता बंद्योपाध्याय    –   बांगला से हिन्दी।
9. एक अक्षर भी झूठा नहीं       -  सुष्मिता बंद्योपाध्याय     –   बांगला से हिन्दी।
10. सत्ताइस दिन तितली के (काव्य संग्रह)  – सुव्रतो दास       -   बांगला से हिन्दी।
11. गोधूलि गीत  (उपन्यास)    -     समीरण गुहा           -   बांगला से हिन्दी।
12. दहकते अंगारे (नाटक)      –     रिफ़त शमीम           –   उर्दू से हिन्दी।
13. ढिंबरी टाइट  ( कथा संग्रह)  –     तेजेंद्र शर्मा            –    हिन्दी से पंजाबी।

प्रकाशनाधीन (प्रेस में) –

1. आरती (काव्य संग्रह)          – शिव बटालवी       –   पंजाबी से बांगला में लिप्यांतरण।
2. हवा, हवा हूँ मैं   (उपन्यास)    – दलीप कौर टिवाणा  –   पंजाबी  से हिन्दी।
  3. गाथा तिस्ता पार दी (वृतांत्मक) –  देवेश राय         –   बांगला से पंजाबी।





































2 टिप्‍पणियां:

  1. नीलम,तुम्हारी लेखन खासकर अनुवाद-यात्रा पढ़कर बेहद अच्छा लगा। इनमें अधिकतर अनुवाद तो खैर मेरे पढ़े हुए ही हैं,और मूल रचना से कहीं से भी कमतर नहीं ...
    # रावेल पुष्प.

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  2. आपकी बहुमुखी प्रतिभा को नमन!
    बहुत बड़ा काम किया है आपने।

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