क्या-क्या हुआ हमसे जुनूं में न पूछिए, उलझे कभी ज़मीं में कभी आसमां में हम।
वीरेद्र राय |
पहले मेरी समझ में नहीं आता था कि ये ब्लॉग क्या बला है। अख़बारों में बिग बी और दूसरों के ब्लॉग की बातें पढ़कर सोचा करती कि पता नहीं क्या बला है ये। इंटरनेट क्नेक्शन लेने के बाद एक दिन वीरेन्द्र जी ने मुझे अपने ब्लॉग का पता लिखवा कर कहा कि इसे देखिएगा। उनके ब्लॉग से गुज़रने के बाद स्क्रीन पर नया बलॉग बनाना चाहते हैं मैसेज देखकर आधे घंटे में मैंने अपना ब्लॉग बना डाला। और फिर फोन पर पूछ-पूछ कर मैंने अपने ब्लॉग को आगे बढ़ाया क्योंकि बलॉग शुरू तो कर लिया लेकिन अगली पोस्ट कैसे डालनी है यह नहीं पता था। फिर एक के बाद एक तीन ब्लॉग बन गए और मुझे अनायास ही ब्लॉगिंग की दुनिया से जोड़ कर अब ये खुद वक्त न मिलने की बात करते हैं।
अपने ब्लॉग खरोंचे पर इन्होंने जून 2008 से जनवरी 2010 तक 22 कविताएं डाली हैं, जिनमें से अधिकतर रोमानी अंदाज़ को समेटे हुए हैं, कहीं कुछ खोने की यादें भी, कहीं जिंदगी की तल्ख सच्चाईयां भी। चलिए आपसे शेयर करते हैं वीरेन्द्र राय की कुछ कविताएं - नीलम शर्मा 'अंशु'
झक सफेद रूमाल से
हाथों को पोंछता
मुस्कुराता हुआ
गर्मजोशी से
वह
मेरी ओर आगे बढ़ा ।
हाथ मिलाने को तत्पर
खुली दायीं हथेली में,
मेरा दाया हाथ थाम
हौले-हौले सहलाता
थामे खड़ा रहा
कुछ देर ।
और फिर
दोनों हाथों से
मेरे कंधों को मीठी-सी दाब दे
वह आगे निकल गया ।
अचानक
सामने आदमकद आइने में मैने देखा
वह पलटा
ठीक मेरी पीठ के पीछे
उसके वही दोनो हाथ
खामोशी से
मेरी गरदन की ओर बढ़ने लगे ।
इससे पहले कि मैं संभलूं
मेरा दम घुटने लगा
मुझे वहीं छोड़
उसी झक सफेद रूमाल से
हाथों को पोंछता
मुस्कुराता हुआ
खुली हथेली लिए
गर्मजोशी से
वह आगे बढ़ गया ।
हाथों को पोंछता
मुस्कुराता हुआ
गर्मजोशी से
वह
मेरी ओर आगे बढ़ा ।
हाथ मिलाने को तत्पर
खुली दायीं हथेली में,
मेरा दाया हाथ थाम
हौले-हौले सहलाता
थामे खड़ा रहा
कुछ देर ।
और फिर
दोनों हाथों से
मेरे कंधों को मीठी-सी दाब दे
वह आगे निकल गया ।
अचानक
सामने आदमकद आइने में मैने देखा
वह पलटा
ठीक मेरी पीठ के पीछे
उसके वही दोनो हाथ
खामोशी से
मेरी गरदन की ओर बढ़ने लगे ।
इससे पहले कि मैं संभलूं
मेरा दम घुटने लगा
मुझे वहीं छोड़
उसी झक सफेद रूमाल से
हाथों को पोंछता
मुस्कुराता हुआ
खुली हथेली लिए
गर्मजोशी से
वह आगे बढ़ गया ।
क्या कभी ऐसा हुआ है कि तुम
शान्ति के शोरगुल से परेशान होकर
दिवाली के बचे पटाखे
गली के बच्चों में बांटने निकल पड़े हो ।
या फिर कभी
चुप्पी के चीत्कार ने
तुम्हारे कानों के पर्दे फाड़ डाले हों ।
या फिर कभी
सन्नाटे की सनसनाहट से
तुम भागते फिरे हो
अपने से, अपने-अपनों से दूर ।
या फिर कभी
खामोशी की चीख
या
नीरवता की हलचल ने
तुम्हारी रातों की नींद हराम कर दी हो ।
या फिर कभी
मौन की कर्कश ध्वनि
मंडराती रही हो तुम्हारे चारों ओर ।
या फिर कभी
मूक अपेक्षाओं को
पूरा न कर पाने की असमर्थता
सालती रही हो तुम्हे
दिन-रात
या फिर कभी
ऐसा लगा हो तुम्हें
कि अव्यक्त शब्दों के
उपलक्षति अर्थ खोजने में ही
शेष हो जाएगा तुम्हारा जीवन ।
तो जान लो तुम
कि
तुम जिन्दा हो ।
यही जीवन है ।
यहां
शान्ति का शोरगुल
चुप्पी की चीत्कार
सन्नाटे की सनसनाहट
खामोशी की चीख
नीरवता की हल-चल
मौन की कर्कश घ्वनि
सभी महसूस करते हैं
कभी-न-कभी
जीवन में ।
शान्ति के शोरगुल से परेशान होकर
दिवाली के बचे पटाखे
गली के बच्चों में बांटने निकल पड़े हो ।
या फिर कभी
चुप्पी के चीत्कार ने
तुम्हारे कानों के पर्दे फाड़ डाले हों ।
या फिर कभी
सन्नाटे की सनसनाहट से
तुम भागते फिरे हो
अपने से, अपने-अपनों से दूर ।
या फिर कभी
खामोशी की चीख
या
नीरवता की हलचल ने
तुम्हारी रातों की नींद हराम कर दी हो ।
या फिर कभी
मौन की कर्कश ध्वनि
मंडराती रही हो तुम्हारे चारों ओर ।
या फिर कभी
मूक अपेक्षाओं को
पूरा न कर पाने की असमर्थता
सालती रही हो तुम्हे
दिन-रात
या फिर कभी
ऐसा लगा हो तुम्हें
कि अव्यक्त शब्दों के
उपलक्षति अर्थ खोजने में ही
शेष हो जाएगा तुम्हारा जीवन ।
तो जान लो तुम
कि
तुम जिन्दा हो ।
यही जीवन है ।
यहां
शान्ति का शोरगुल
चुप्पी की चीत्कार
सन्नाटे की सनसनाहट
खामोशी की चीख
नीरवता की हल-चल
मौन की कर्कश घ्वनि
सभी महसूस करते हैं
कभी-न-कभी
जीवन में ।
भय (2)
सच है कि मैं
खोना नहीं चाहता था तुम्हें ।
तुम भी
पाना चाहती थी मुझे ।
यह भी सच्च है
तुम मेरी थी
तुम्हें खोने का भय भी
मेरा भय था ।
पर
मैं नहीं था
तुम्हारा ।
तुम चाहती थी मुझे
अपना बनाना
पर तुम्हें मुझे खोने का भय नहीं था ।
इसलिए
समझ नहीं पायी तुम
कि
किसी अपने को खोने का भय
कहीं अधिक भयभीत करता है
अपनी मौत के भी भय से ।।खोना नहीं चाहता था तुम्हें ।
तुम भी
पाना चाहती थी मुझे ।
यह भी सच्च है
तुम मेरी थी
तुम्हें खोने का भय भी
मेरा भय था ।
पर
मैं नहीं था
तुम्हारा ।
तुम चाहती थी मुझे
अपना बनाना
पर तुम्हें मुझे खोने का भय नहीं था ।
इसलिए
समझ नहीं पायी तुम
कि
किसी अपने को खोने का भय
कहीं अधिक भयभीत करता है
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