तुझे याद रहे न रहे......
जी हाँ, ऐसा कैसे हो सकता है कि भला याद न रहे। आज ही के दिन 7 मई 1861 को जोड़ासांको, कोलकाता में कविगुरु रवीन्द्र नाथ ठाकुर का जन्म हुआ था। आज उनकी 150 वीं जयंती है। लेकिन बांगला कैलेंडर के अनुसार उनकी जयंती 25 बैसाख को मनाई जाती है जो कि इस बार 9 मई को पड़ रही है। राजधानी दिल्ली में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तत्ववधान में आज से कार्यक्रमों की शुरूआत हो गई है लेकिन बंगाल में मुख्य कार्यक्रम 9 मई को ही आयोजित किए जा रहे हैं।
रवीन्द्र नाथ बहुमुखी प्रतिभा संपन्न थे। कवि, उपन्यासकार, संगीतकार, चित्रकार, नाटककार, निबंधकार, कहानीकार कौन सा रूप नहीं उजागर हुआ हमारे समक्ष। मात्र 16 वर्ष की उम्र में उन्होंने भानुसिंहों नाम से उनका पहला काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ। काव्य संग्रहों में मानसी, सोनार तोरी, गीतांजलि, बलाका, नाटकों में डाक घर, मुक्तधारा, रक्तकरबी, नष्टो नीड़, गोरा, घौरे बाईरे, योगायोग तथा जीवनस्मृति और छेलेबैला जैसी संस्मरणात्मक पुस्तकों के साथ-साथ उन्होंने अनेक कहानियों की भी रचना की। नौकाडुबी, चोखेर बाली आदि भी उल्लेखनीय कृतियां है। उनकी कहानी काबुलीवाला चिरस्मरणीय व कालजयी कहानी है। उनकी अनेक कालजयी रचनाओं को पर्दे पर उतारा गया है।
1911 में उन्हें उनकी पुस्तक गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद पर नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले वे प्रथम गैर-यूरोपीयन थे। वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग नरसंहार के विरोध में उन्होंने अपनी नाइटहुड की उपाधि का त्याग किया।
वे एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं जिन्हें भारत के राष्ट्रगान जन गण मण तथा बांग्लादेश के राष्ट्रगान आमार शोनार बांगला सहित दो देशों के राष्ट्रगान लिखने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने लगभग 2230 गीतों को संगीतबद्ध किया जो कि रवीन्द्र संगीत कहलाता है तथा बंगाल की संस्कृति का अभिन्न अंग है। रवीन्द्र संगीत के ज़रिए कवि गुरु बंगाल के हर घर में विद्यमान हैं।
कोलकाता के रवीन्द्र प्रेमी श्री दाऊ लाल कोठारी जी ने उनके गीतों का हिन्दी अनुवाद किया है रवीन्द्र सुधा नाम से। सिर्फ अनुवाद ही नही बल्कि उनका ग्रुप इसकी प्रस्तुतियां भी देता हैं। सबसे पहले पद्मश्री मन्ना डे साहब ने रवीन्द्र सुधा को अपना स्वर दिया जिसे अप्रैल 2002 में सारेगामा ने सी. डी. के रूप में जारी किया। अब तो अनेक कलाकारों ने इसे हिन्दी में गाया है। सब गीत तो नहीं हां, कुछ गीत मुझे बहुत प्रिय हैं।
रवीन्द्र नाथ मेरे जीवन में इस तरह शामिल हैं कि 1998 को रवीन्द्र जयंती वाले दिन मेरे पिता का निधन हुआ। रवीन्द्र जयंती का दिन यानी बांग्ला कैलेंडर का 25 बैसाख (9 मई) सदैव अविस्मरणीय बन गया मेरे लिए। सोचा था जब तक बंगाल में रहूंगी, हमेशा रवीन्द्र जयंती याद रहेगी। फिर 8 वर्षों बाद 2006 में मेरी दादी का निधन भी 9 मई को हुआ। रवीन्द्र जयंती की छाप और याद ज़हन में और भी पुख्ता हो गई।
बाद में जोड़ा गया (25-08-2011)
रवीन्द्र के गीतों पर आधारित कई गीत हिन्दी फ़िल्मों में भी इस्तेमाल हुए। कुछ उल्लेखनीय गीत हैं :-
1) छूकर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा - .याराना
(तोमार होलो शुरु आमार होलो शारा)।
2) तेरे मेरे मिलन की ये रैना – अभिमान ( जोदी तारे नोई चिनी गो)
3) बचपन के दिन भुला न देना – दीदार ( मोने रौबे कि न रौबे)
4) मन मेरा उड़ता जाए – मां बेटा ( मोन मोर मेघेर सोंगी)
5) नन्हा सा पंछी रे तू – टूटे खिलौने ( भेंगे मोर घौरेर चाबी)
6) जाएं तो जाएं कहां – टैक्सी ड्राइवर ( हे खोनिकेर औतिथी)
7) राही मतवाले – वारिस (ओरे गृहोवाशी)
8) मेघा छाए आधी रात – शर्मीली ( लौहो लौहो तूले लौहो)
9) मेरा सुंदर सपना – दो भाई ( रोदनभौरा एई बौसंते)
10) बंधन खुला पंछी उड़ा – युगपुरुष
11) इसी वर्ष रिलीज फ़िल्म कहकशां (नौकाडूबी पर आधारित) के सभी गीत, जिनका हिन्दी रुपांतरण गुलज़ार साहब ने किया है।
चूँकि ये उनका 150वां जयंती वर्ष है, मैं भी अपने को भाग्यशाली
मानती हूँ कि उनके जन्म दिन और पुन्य तिथि दोनों दिन मेरा एफ. एम.
पर प्रोग्राम था। जन्म दिन पर मैंने पूरे दो घंटे का प्रोग्राम उनके नाम किया
और पुण्य तिथि वाले दिन 35 मिनट का। उनके गीतों पर आधारित फ़िल्मी
और गैर फ़िल्मी गीत बजाए।
प्रस्तुति - नीलम अंशु
गुरुदेव को शत-शत नमन!
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