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मंगलवार, जनवरी 17, 2012

जन्म दिन मुबारक जावेद साहब !



आज पटकथा लेखक, गीतकार, शायर जावेद अख़्तर साहब का जन्म दिन। उन्हें संस्कृति सरोकार परिवार की तरफ से सालगिरह पर ढेरों बधाईयां।  प्रस्तुत है उनकी कुछ खूबसूरत ग़ज़लें : - 



1)  

मुझको यकीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चांद में परियां रहती थीं
एक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाखें बोढ हमारा सहती थीं
एक वो दिन जब 'आओ खेलें' सारी गलियां कहती थीं
एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं
एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझिल रहती थीं
एक ये दिन जब ज़हन  में सारी अय्यारी की बातें हैं
एक वो दिन जब दिल में भोली -भाली बातें रहती थीं।




2)


वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है
ज़मीन सूरज की उंगलियों से फिसल रही है
जो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वो बेख़बहर हैकं
कि मेरी ज़ंजीर धीरे-धीरे पिघल रही है
मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन
मेरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है
न जलने पाते थे जिसके लहू से चूल्हे भी हर सवेरे
सुना है कल रात से वो बस्ती भी जल रही है
मैं जानता हूं कि ख़ामशी में ही मस्लहत है
मगर यही ख़ामशी मेरे दिल को खल रही है
कभी तो इंसान ज़िंदगी की करेगा इज़्ज़त
ये एक उम्मीद आज भी दिल में पल रही है।



3)

सच तो ये है बेकार हमें ग़म होता है
जो चाहा था दुनिया में कम होता है
ढलता सूरज फैला जंगल रस्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है
ग़ैरों को कब फ़ुरसत है दुख देने की
जब होता है कोई हमदम होता है
ज़ख्म तो हमने इन आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है
ज़हन की शाखों पर अशआर आ जाते हैं
जब तेरी यादों का मौसम होता है।


4)

हमसे दिलचस्प कभी सच्चे नहीं होते हैं
अच्छे लगते हैं मगर अच्छे नहीं होते हैं
चाँद में बुढ़िया बुजुर्गों में खुदा को देखें
भोले अब इतने तो ये बच्चे नहीं होते हैं
कोई याद आए हमें, कोई हमें याद करे
और सब होता है ये किस्से नहीं होते हैं
कोई मंज़िल हो बहुत दूर ही होती है मगर
रास्ते वापसी के लंबे नहीं होते हैं
आज तारीख़ तो दोहराती है खुद को लेकिन
इसमें बेहतर जो थे वो हिस्से नहीं होते हैं।



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