कवियत्री, लेखिका, अनुवादक सुशील गुप्ता की स्मृति में भावांजलि।
11 दिसंबर,2013 को मैंने फेसबुक पर लिखा था कि "बहुत
ही अद्भुत संयोग है – 11-12-13. अब यह तारीख सौ सालों बाद ही दुबारा आएगी। अफसोस तब हम न होंगे।" 17 दिसंबर, 2013 को जनसंसार सभागार में शहर की कवियत्री, लेखिका, अनुवादक सुशील
गुप्ता जी की स्मृति
में भावांजलि का आयोजन किया गया। विगत 11 दिसंबर की रात हार्ट अटैक के कारण सुशील
जी अलविदा कह गईं।
श्री नवल |
भावांजलि
में बोलते हुए आरंभ में वरिष्ठ कवि व सुशील जी के करीबी पारिवारिक मित्र नवल जी ने कहा कि भाई सा स्नेह था उससे। वे हमेशा खुद
को मुझसे छह साल छोटी कहती रहीं और मैंने भी मान लिया। यह तो अब पता चला कि वह
मुझसे एक साल बड़ी थीं। अंतिम संस्कार के समय उसके चेहरे पर एक अलग ही तेज था।
उन्होंने यह भी कहा कि बहुत संघर्ष किया उन्होंने अपने जीवन में और अपनी शर्तों पर
जिंदगी जी। जो लोग खुद राह चुनते हैं उन्हें संघर्ष तो करना ही पड़ता है।
सुधा अरोड़ा |
मुंबई से आईं वरिष्ठ लेखिका सुधा अरोड़ा ने कहा कि लंबा परिचय था उनसे।
वे हमसे उम्र में बड़ी थी लेकिन दोस्ती करने का जज़्बा बहुत गहराई से पैठा हुआ था।
वे दोस्ती के लिए व्यक्ति को बराबरी के स्तर पर ले आती थीं। लीक से हटकर ज़िंदगी अपनाई
उन्होंने और अपनी शर्तों पर ही उसे जीया। उन्होंने दूरदर्शन की नौकरी के दौरान कई
महत्वपूर्ण साक्षात्कार करवाए जो कि आर्काइव्ज़ में रखने लायक हैं। कविताएं भी लिखीं लेकिन सकुन उन्हें
अनुवाद में ही मिला। जीवन में जो भी काम किया परफेक्शन के साथ किया।
स्वेदश भारतीय |
डॉ. कमलेश जैन ने कहा कि अनुवाद से जुड़े होने के बावजूद वे मौलिक सर्जक थीं। अपनी रचनाओं
में और हमारी यादों में वे हमेशा समाई रहेंगी।
डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कहा कि फोन पर वे फटकारा करती थीं। जिस अधिकार से वे डाटती थीं लगता था कि कलकत्ते में कोई तो ऐसा है। दायित्व लेने और उसके निर्वहन में कोई कमी नहीं रखती थी।
डॉ. श्रीनिवास शर्मा |
वरिष्ठ वरिष्ठ आलोचक डॉ. श्रीनिवास शर्मा ने कहा कि वे सकारात्मक सोच की महिला थीं, आत्मविश्वास से लबरेज।
लखनऊ
दूरदर्शन की कार्यक्रम अधिशासी माला श्रीवास्तव ने कहा कि ऊबड़-खाबड़ रास्तों से
गुज़रते हुए उन्होंने अपने लिए समतल जगह खुद ही बनाई। साहित्य के साथ-साथ दूसरी
चीज़ों में भी उनकी उतनी ही दिलचस्पी थी।
डॉ. वसुमति डागा ने कहा कि उनके हर काम में
रचनाशीलता प्रस्फुटित हुई। वे सिर्फ़ नौकरी के लिए नौकरी नहीं करती थी, काम में गहराई तक डूब जाया करती थी और बड़े ठाठ
से कहा करती कि जो किया बेश किया।
उर्दू समाचार वाचिका डॉ. नुसरत जहां ने भी
अपने संस्मरण सांझा करते हुए कहा कि वे बड़े अधिकार से डांट लगाया करती थीं।
कथाकार सेराज खान बातिश ने कहा कि उन्होंने उर्दू भाषी लड़कियों को ख़बरों से जोड़ा और नकाब से मुक्त किया।
कथाकार सेराज खान बातिश ने कहा कि उन्होंने उर्दू भाषी लड़कियों को ख़बरों से जोड़ा और नकाब से मुक्त किया।
लक्ष्मी प्रसाद केड़िया ने कहा कि उन्होंने अनुवाद के माध्यम से कलकत्ते को प्रसिद्धि दिलाई
और सेतु बंधन का काम किया।
शायर और कवि रवि प्रताप सिंह ने कहा कि अभी दो वर्ष
पूर्व इसी सभागार में उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए उन्हें सम्मानित किया गया
था और अब यकीन ही नहीं होता कि वे हमारे बीच नहीं रहीं।
नीलम शर्मा अंशु ने कहा
उनसे बहुत निकटता तो नहीं रही लेकिन 12 वर्ष पूर्व शहर के ही एक अखबार के कॉलम
हेतु विस्तार से बात-चीत का मौका मिला। उसी के माध्यम से उन्हें जानने की कोशिश
की। उन्होंने दूरदर्शन पर 22 साल की सेवा दी और ठाठ से नौकरी की। इस दौरान
उन्होंने कविता, कहानी मंचन और कवि सम्मेलनों में कई तरह के
प्रयोग किए जो बेहद सराह गए। उनका लक्ष्य रहा कि जिंदा रहना है तो अपने दम पर, अपने पैरों पर खड़े होकर जीना है। उनके जीवन का
मूलमंत्र था कि स्वतंत्र बनो, स्वच्छंद नहीं। अंशु ने यह भी कहा कि भले ही मुझे सुशील जी की जन्म
तारीख कभी याद न रहे लेकिन उनकी पुण्यतिथि हमेशा याद रहेगा क्योंकि वह मेरा
जन्मदिन है। कितना अद्भुत संयोग है 11-12-13, एक वरिष्ठ अनुवादक की पुण्यतिथि और कनिष्ठ
अनुवादक का जन्मदिन।
कवियत्री गीता दुबे ने कहा कि उनसे बहुत करीब तो नहीं रही लेकिन उनके अनुवाद कार्यों के माध्यम
से उन्हें जाना। उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण अनुवाद किए बांगला से।
इसके अलावा कवियत्री कुसुम जैन मधु चौरसिया, रेणु जी व सरोज जी ने भी
अपने-अपने अंदाज़ में अपने संस्मरण सांझा किए। भावांजलि का संचालन प्रेम कपूर ने
किया। घनश्याम मौर्य, जितेंद्र धीर, कुश सहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों व साहित्यप्रेमियों की भावांजलि में उपस्थिति रही। अंत में एक मिनट के मौन से श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
प्रस्तुति – नीलम शर्मा ‘अंशु’
तस्वीरें - अंशु
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