डॉ. अरुण प्रकाश अवस्थी की समृति में सुमिरन सभा
वर्ष 2013 की इस अंतिम तिमाही में हिन्दी साहित्य जगत की कई मूर्धन्य शख्सियतें एक-एक कर बिछोड़ा दे गईं। कोलकाता से भी अभी हाल ही में 29 नवंबर को साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर डॉ. अरुण प्रकाश अवस्थी इहलोक को अलविदा कह गए। रविवार 22 दिसंबर (2013)
की शाम बैसवारा परिषद के तत्वावधान में काशीपुर के आदर्श युवक संघ सभागार में कोलकाता
के जाने-माने साहित्यकार डॉ. अरुण प्रकाश अवस्थी की समृति में सुमिरन सभा भावांजलि का
आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के आरंभ में मंगल स्तुति
प्रस्तुत की गई। उसके बाद अवस्थी जी रचित
सरस्वति वंदना प्रस्तुत की डॉ. गिरिधर राय ने।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी ने संक्षेप में उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला और कहा कि स्मरण करते हुए हम मरण को चुनौती देते हैं। आप अपने स्मरण में अपने प्रिय को, अपने कवि को, अपने साहित्यकार को, अपने संबंधी को जिस रूप में भी स्मरण करेंगे, वे कभी भी आपसे विलग नहीं होंगे। अवस्थी जी ने ऐसी ओजस्वी रचनाएं कीं जो हमसे कभी अलग नहीं होंगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी ने संक्षेप में उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला और कहा कि स्मरण करते हुए हम मरण को चुनौती देते हैं। आप अपने स्मरण में अपने प्रिय को, अपने कवि को, अपने साहित्यकार को, अपने संबंधी को जिस रूप में भी स्मरण करेंगे, वे कभी भी आपसे विलग नहीं होंगे। अवस्थी जी ने ऐसी ओजस्वी रचनाएं कीं जो हमसे कभी अलग नहीं होंगी।
डॉ. अवस्थी के करीबी पारिवारिक मित्र एडवोकेट श्री
वीरभद्र सिंह ने कहा कि वे हमेशा अपने दोस्तों की सहायता के लिए तत्पर रहते थे।
कार्यक्रम की विशेषता यह रही कि भावांजलि की श्रृंखला में हर कवि ने डॉ. अवस्थी की
ही रचनाओं का पाठ अपने-अपने अंदाज़ में किया।
इस श्रृंखला में नंद लाल रौशन ने
उनकी ग़ज़ल तरन्नुम में पेश की, जिसकी बानगी कुछ यूं थी –
कैसे गीत आज मैं गाऊँ
मंचों पर यक्षों का कब्जा
कवि जोकर कव्वाल हो गए
कविता के नाम बिक रही चुटकुलेबाजी
नौटंकी का अंदाज़ बोलो कैसे मैं अपनाऊँ
कैसे गीत आज मैं गाऊँ।
शंभुनाथ जालान निराला ने भी उनकी ग़ज़ल कोई नहीं है साथ बस
तनहाईयां रहीं तरन्नुम में पेश की।
रवि प्रताप सिंह ने उनके बेहद लोकप्रिय और मशहूर खंडकाव्य
महाराणा के पत्र से एक अंश का ओजपूर्ण पाठ किया।
अगम शर्मा द्वारा प्रस्तुत कवि का संकल्प कविता की बानगी देखें –
घात के प्रतिघात के पथ पर चलता रहूंगा
किंतु फिर भी इस लोक को आलोक से भरता रहूंगा।
नीलम शर्मा अंशु ने कहा कि विधि का विधान देखें कि इस सभागार
में जो शख्सीयत अक्सर कवि सम्मेलनों की अध्यक्षता किया करती थी वह आज हमारे बीच
तस्वीर के रूप में विराजमान है। अंशु ने उनकी बेहद लोकप्रिय कविता राम और रावण की आवृत्ति प्रस्तुत की।
डॉ. लखबीर सिंह निर्दोष, योगेंद्र शुक्ल सुमन, कुँवर वीर सिंह
मार्तंड, सलमा सहर, रणजीत भारती, हीरा लाल साव, काली प्रसाद जायसवाल, जीवन सिंह, आदि ने भी डॉँ. अवस्थी की रचनाओं का
भावपूर्ण पाठ प्रस्तुत किया।
हावड़ा कोर्ट के रेसीडेंट जज हरि गोबिंद सिंह, लहक के संपादक निर्भय देव्यांश, प्रभाकर चतुर्वेदी, सागर चौधरी, युसुफ अख़्तर, बदूद आलम सहित
अनेक गणमान्य साहित्यप्रेमी इस मौके पर
उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. गिरिधर राय ने किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. गिरिधर राय ने किया।
अंत में बैसवारा परिषद के संरक्षक दुर्गादत्त सिंह ने इस शाम को अनूठी
और अविस्मरणीय बनाने के लिए सबको धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम की झल्कियां तस्वीरों में......
मंगल स्तुति की प्रस्तुति |
सरस्वति वंदना - डॉ. गिरिधर राय |
अध्यक्षता - डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी |
एडवोकेट वीरभद्र सिंह |
रवि प्रताप सिंह |
नीलम शर्मा अंशु |
अगम शर्मा |
प्रस्तुत है डॉ. अरुण प्रकाश अवस्थी जी की एक रचना.....
राम और रावण
इस बार रामलीला
में
राम को देखकर-
विशाल पुतले का रावण थोड़ा डोला,
फिर गरजकर राम से बोला-
ठहरो!
बड़ी वीरता दिखाते हो,
हर साल अपनी कमान ताने चले आते हो!
शर्म नहीं आती,
काग़ज़ के पुतले पर तीर चलाते हो।
मैं पूछता हूँ
क्या मारने के लिए केवल हमीं हैं
या तुम्हारे इस देश में ज़िंदा रावणों की कमी है?
राम को देखकर-
विशाल पुतले का रावण थोड़ा डोला,
फिर गरजकर राम से बोला-
ठहरो!
बड़ी वीरता दिखाते हो,
हर साल अपनी कमान ताने चले आते हो!
शर्म नहीं आती,
काग़ज़ के पुतले पर तीर चलाते हो।
मैं पूछता हूँ
क्या मारने के लिए केवल हमीं हैं
या तुम्हारे इस देश में ज़िंदा रावणों की कमी है?
प्रभो,
आप जानते हैं
कि मैंने अपना रूप कभी नहीं छिपाया है
जैसा भीतर से था
वैसा ही तुमने बाहर से पाया है।
आज तुम्हारे देश के ब्रम्हचारी,
बंदूके बनाते-बनाते हो गए हैं दुराचारी।
तुम्हारे देश के सदाचारी,
आज हो रहे हैं व्याभिचारी।
यही है तुम्हारा देश!
जिसकी रक्षा के लिए
तुम हर साल
कमान ताने चले आते हो?
आज तुम्हारे देश में विभीषणों की कृपा से
जूतों दाल बट रही है।
और सूपनखा की जगह
सीता की नाक कट रही है।
आप जानते हैं
कि मैंने अपना रूप कभी नहीं छिपाया है
जैसा भीतर से था
वैसा ही तुमने बाहर से पाया है।
आज तुम्हारे देश के ब्रम्हचारी,
बंदूके बनाते-बनाते हो गए हैं दुराचारी।
तुम्हारे देश के सदाचारी,
आज हो रहे हैं व्याभिचारी।
यही है तुम्हारा देश!
जिसकी रक्षा के लिए
तुम हर साल
कमान ताने चले आते हो?
आज तुम्हारे देश में विभीषणों की कृपा से
जूतों दाल बट रही है।
और सूपनखा की जगह
सीता की नाक कट रही है।
प्रभो,
आप जानते हैं कि मेरा एक भाई कुंभकर्ण था,
जो छह महीने में एक बार जागता था।
पर तुम्हारे देश के ये नेता रूपी कुंभकर्ण पाँच बरस में एक बार जागते हैं।
तुम्हारे देश का सुग्रीव बन गया है तनखैया,
और जो भी केवट हैं वो डुबो रहे हैं देश की बीच धार में नैया।
आप जानते हैं कि मेरा एक भाई कुंभकर्ण था,
जो छह महीने में एक बार जागता था।
पर तुम्हारे देश के ये नेता रूपी कुंभकर्ण पाँच बरस में एक बार जागते हैं।
तुम्हारे देश का सुग्रीव बन गया है तनखैया,
और जो भी केवट हैं वो डुबो रहे हैं देश की बीच धार में नैया।
प्रभो!
अब तुम्हारे देश में कैकेयी के कारण
दशरथ को नहीं मरना पड़ता है,
बल्कि कम दहेज़ लाने के कारण
कौशल्याओं को आत्मदाह करना पड़ता है।
अगर मारना है तो इन ज़िंदा रावणों को मारो
इन नकली हनुमानों के
मुखौटों के मुखौटों को उतारो।
नाहक मेरे काग़ज़ी पुतले पर तीर चलाते हो
हर साल अपनी कमान ताने चले आते हो।
मैं पूछता हूँ
क्या मारने के लिए केवल हमीं हैं
या तुम्हारे इस देश में ज़िंदा रावणों की कमी है?
अब तुम्हारे देश में कैकेयी के कारण
दशरथ को नहीं मरना पड़ता है,
बल्कि कम दहेज़ लाने के कारण
कौशल्याओं को आत्मदाह करना पड़ता है।
अगर मारना है तो इन ज़िंदा रावणों को मारो
इन नकली हनुमानों के
मुखौटों के मुखौटों को उतारो।
नाहक मेरे काग़ज़ी पुतले पर तीर चलाते हो
हर साल अपनी कमान ताने चले आते हो।
मैं पूछता हूँ
क्या मारने के लिए केवल हमीं हैं
या तुम्हारे इस देश में ज़िंदा रावणों की कमी है?
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प्रस्तुति – नीलम शर्मा ‘अंशु’
तस्वीरें - अंशु
Ek Doha Sri AwasthiJi ka...'Kuti aur Praasad me kewal itna bhed, Idhar likha Shubh Agman Udhar Pravesh Nishedh'.....unki smriti ko sadar naman.
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