तुम जीयो हज़ारों साल
28 सितंबर 1929 को म. प्र. के इन्दौर में दीनानाथ मंगेशकर के घर प्रथम संतान के रूप में एक कन्या का जन्म हुआ। उस नन्हीं सी, कोमल सी कली का नाम रखा गया हेमा। बाद में उसे पिता के एक नाटक ‘भानबंधन’ की एक पात्र लतिका से लिया गया नाम लता दिया गया और वह हेमा से लता कहलाई। बचपन में पिता ने उसे एक नाम और दिया था – टाटा बाबा । हम बात कर रहे हैं स्वर कोकिला, सुर साम्राज्ञी कालजयी लता जी की। जी हाँ, इस बार वे जीवन के 81 वसंत पार कर 82वें में क़दम रख रही हैं।
विख्यात गायक और अभिनेता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर के घर जन्मीं लता को
संगीत और अभिनय की प्रतिभा/विरासत में मिली। अपनी कड़ी मेहनत से लता ने संगीत की दुनिया में कल्पनातीत ऊँचाईयों को छुआ ।
विख्यात गायक और अभिनेता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर के घर जन्मीं लता को
संगीत और अभिनय की प्रतिभा/विरासत में मिली। अपनी कड़ी मेहनत से लता ने संगीत की दुनिया में कल्पनातीत ऊँचाईयों को छुआ ।
एक सुबह दीनानाथ जी को संगीत की कक्षा बीच में ही छोड़ थोड़ी देर के लिए किसी काम से जाना पड़ा। शिष्य लगातार गा रहा था। पाँच-छह बरस की नन्हीं लता पास ही खेल रही थी। एक-दो बार शिष्य ने ग़लत गाया तो लता खेलना बंद कर उसे समझाने लगी कि वह कहाँ ग़लती कर रहा था । इसी बीच पिता लौट आए। वे पीछे खड़े होकर बेटी का गायन सुनने लगे। लता के शुद्ध गायन ने उन्हें चौंका दिया। और,फि़र क्या था अगले ही दिन से उन्होंने लता को संगीत की तालीम देनी शुरू कर दी। भोर होते ही लता जग जाती और तानपुरा लेकर अभ्यास करती। जब वे सात वर्ष की थीं, तब पिता सपरिवार अलग-अलग स्थानों पर घूम-घूम कर ‘सोभद्र’ नामक नाटक का मंचन कर रहे थे। उन दिनों वे ‘मनमाहू’ में थे। नाटक में नारद की भूमिका करने वाला कलाकार मंचन के ठीक पहले बीमार हो गया। नाटक की घोषणा हो चुकी थी। अत: उसे टाला नहीं जा सकता था। बड़ा गंभीर संकट था। ऐसे में लता ने परेशान पिता से कहा – ‘परेशान मत हों बाबा, मैं नारद की भूमिका करूंगी और मैं विश्वास दिलाती हूँ कि दर्शकों को मेरा काम पसंद आएगा, आख़िरकार मैं आपकी बेटी हूँ।’ बेटी ने जिस विश्वास से कहा उसे देखते हुए पिता को गंभीरता से विचार करना पड़ा। परंतु समस्या यह थी कि नाटक में अर्जुन की भूमिका निभा रहे दीनानाथ 36 वर्ष के थे और नारद सिर्फ़ 7 वर्ष का। हालात ये थे कि या तो स्थिति को स्वीकारा जाए या नाटक का प्रदर्शन रद्द किया जाए। अंतत: पर्दा उठते ही एक मंजे हुए कलाकार की जगह बच्चे को देख दर्शकों में खुशी की लहर दौड़ गई। नन्हें नारद के होंठ हिले, दृश्य के अनुसार शब्द, लय, राग ने दर्शकों को विस्मित कर दिया। मंत्रमुग्ध से बैठे दर्शक कलाकारों की उम्र के फ़र्क को भूल गए। और उस रात जब लता घर लौटी तो माँ ने काला टीका लगा दिया ताकि बुरी नज़र न लग जाए।
13 साल की उम्र में पिता के निधन ने एकाएक नन्हीं सी लता को बड़ा बना दिया। पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़ी होने के कारण पिता के देहांत के बाद पारिवारिक ज़िम्मेदारियां लता पर आ पड़ीं। मजबूरन एक्टिंग की ओर रुख करना पड़ा। हालाँकि पिता कभी अभिनय के पक्ष में नहीं रहे जबकि उनकी अपनी फ़िल्म और ड्रामा कंपनी थी।
अपने जीवन काल में वे केवल एक दिन स्कूल गईं। वह भी छोटी बहन आशा को गोद में लिए स्कूल पहुँची तो डाँट पड़ी और कहा गया कि इसे घर पर छोड़ कर आओ। लता ने सोचा जहां मेरी बहन के लिए जगह नहीं वहां मैं भी नहीं जाऊँगी। भले ही किसी विद्यालय से उन्होंने विधिवत् शिक्षा न ली हो लेकिन अनेक विश्व विद्यालयों ने उन्हें मानद डी. लिट की उपाधियों से नवाज़ा है।
1942 में फ़िल्म ‘पहली मंगलागौर’ से बतौर बाल-कलाकार लता मंगेशकर ने अपने करियर की शुरुआत की। इस फ़िल्म में उन्होंने अभिनय के साथ-साथ गीत भी गाए। वैसे उन्होंने अपने करियर का पहला गीत 1942 में ही मराठी फ़िल्म ‘किटी हासल’ में गाया लेकिन उसे फ़िल्म में शामिल नहीं किया गया।
हिन्दी में लता जी ने पहली बार पार्श्व गायन किया 1947 में फ़िल्म ‘आपकी सेवा’ में । संगीत था दत्ता डावजेकर का। गीत के बोल थे– ‘ लागूं, कर जोरी रे, श्याम मोसो न खेलो होरी।’
हिन्दी में लता जी ने पहली बार पार्श्व गायन किया 1947 में फ़िल्म ‘आपकी सेवा’ में । संगीत था दत्ता डावजेकर का। गीत के बोल थे– ‘ लागूं, कर जोरी रे, श्याम मोसो न खेलो होरी।’
अभिनय - मराठी के साथ-साथ हिन्दी में बड़ी माँ(1945), जीवनयात्रा/सुभद्रा(1946), मंदिर(1948) , छत्रपति शिवाजी (1952) आदि फ़िल्मों में अभिनय भी किया।
संगीत निर्देशन - अभिनय और पार्श्व गायन के अलावा लता जी ने ‘आनंदघन’ नाम से मराठी में 1950 में राम राम पाहुणे, 1963 में मोहित्यांची मंजुला, 1964 में मराठा तितुका मेलवावा, 1965 में साधी माणसं, 1969 में तांबड़ी माता आदि पाँच फ़िल्मों का संगीत सृजन भी किया।
फ़िल्म निर्माण – 1953 में मराठी में बादल, हिन्दी में झांझर ( सी. रामचन्द्र के साथ), 1955 में मराठी में कांचनगंगा तथा 1990 में हिन्दी में ‘लेकिन’ जैसी फ़िल्मों का निर्माण भी किया।
पसंद – लता का पसंदीदा रंग है सफ़ेद। वे हीरों की बेहद शौकीन हैं। उनका पसंदीदा त्योहार है दीवाली, मौसम में शरद ऋतु, शहरों में मुंबई और न्यूयॉर्क, खेलों में क्रिकेट, फुटबॉल और टेनिस प्रिय हैं। फोटोग्राफी, व्यंजन बनाने, आइसक्रीम, अचार और साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने की वे बेहद शौकीन हैं। भूपाली, मालकौंस, गोरख, कल्याण, यमन, भीम पलासी उनकी प्रिय राग-रागिनियां हैं।
मान-सम्मान –
1958 में फ़िल्म मधुमति (आ जा रे परदेसी), 1962 में फ़िल्म बीस साल बाद (कहीं दीप जले कहीं दिल) 1965 में फ़िल्म खानदान (तुम्हीं मेरे मंदिर) 1969 में फ़िल्म जीने की राह (आप मुझे अच्छे लगने लगे) आदि गीतों के लिए उन्हें फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
राष्ट्रीय सम्मान –
1969 में पद्मभूषण, 1989 में दादा साहब फालके सम्मान, 2001 में भारत रत्न से सम्मानित।
लता मंगेशकर एक मात्र ऐसी शख्सीयत हैं जिनके जीवनकाल में म. प्. सरकार मे 1984 से सुगम संगीत का अलंकरण पुरस्कार देना शुरू किया और 1992 से महाराष्ट्र सरकार ने लता मंगेशकर सम्मान देना शुरू किया।
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लता जी को कोटि-कोटि नमन।
जवाब देंहटाएं"तुम जियो हज़ारों साल!"
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
काव्यशास्त्र (भाग-3)-काव्य-लक्षण (काव्य की परिभाषा), आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
जी शुक्रिया सर।
जवाब देंहटाएंKoi aur Lata ho nahi sakti. Unhe tahe dil se mubarakbad
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