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शनिवार, जून 11, 2011

इमरोज़ जी की कविताएं ।


इस बार संस्कृति सरोकार के मंच पर प्रस्तुत हैं 
जाने-माने अंतर्राष्ट्रीय चित्रकार इमरोज़ जी की चंद कविताएं।


           (1)


अलिखित

वह जब भी मुझसे मिलती है
अक्सर एक अलिखित नज़्म
नज़र आती है

मैं इस अलिखित नज़्म को
कई बार लिख चुका हूँ
परंतु यह अलिखित ही रह जाती है.....

क्या पता यह अलिखित नज़्म
लिखने के लिए हो ही नहीं
यह सिर्फ़
मनचाहे जीवन के लिए ही हो....


(2)

दु:ख-सुख

सारे आसमां पर
बेशक आसामां जितना भी
लिखा हो
कि ज़िंदगी दु:ख है
तो भी
इन्सान धरती पर
अपने जितना तो लिख ही सकता है
कि ज़िंदगी सुख भी है......


(3) 

ख़यालों की भाँति

धरती के बाशिंदो का
एक वक्त होता है
और जब धरती के बाशिंदो का
एक वक्त ख़त्म हो जाता है
लोग कहाँ जाते हैं
मुझे नहीं पता.....

हाँ, जो ख़यालों की भाँति होते हैं
वे ख़यालों में जा बसते हैं
ख़यालों जैसे ख़ास लोग
एक वक्त के लिए नहीं होते
वे हर वक्त के लिए होते हैं......

(4)

इतवार

आज इतवार है
ब्द अभी जगे नहीं
हवा जग गई है
और ताज़गी भी....
एक हल्की-हल्की सी खुशबु
हवा में तैरती पसरती
साँसों तक आ रही है.....

मैं तुम्हें सोच और देख भी रहा हूँ
मेरे हाथों में
पहली धूप का कागज़
आ गया है

आज इतवार है
शब्द अभी जगे नहीं
फिर भी एक नज़्म है
जो धूप के कागज पर जग गई है।

(5)

कई बार

कई बार
मैं सोचता हूँ
न बात करने वाला कोई है
न सुनने वाला
घर में सभी हैं
परंतु घर नहीं.....
कविता कविता बन कर वह आ जाती है
मेरे सामने बैठ जाती है
खुशबु की भाँति बोलती है
हवा की भाँति मैं सुन लेता हूँ.....

वह अक्सर हँसती रहती है
जब हँसती है दिखती भी है
जब दिखती है
घर भी दिखता है
मैं घर में होता हूँ
जब घर में होता हूँ
मैं और नहीं सोचता......

पंजाबी से अनुवाद    नीलम अंशु
(साभार अक्खर, अप्रैल-मई 2011)












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