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सोमवार, अप्रैल 02, 2012

न इतना हलवा बन कि चट कर जाएं भूखे, न इतना कड़वा बन कि जो चखे वो थूके..









रविवार, मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम जी का जन्म दिन और राममय जीवन गुज़ारने वाले आचार्य विष्णुकांत शास्त्री जी की पुण्यतिथि। कल की शाम श्री कुमार सभा पुस्तकालय द्वारा शास्त्री जी की स्मृतियों के नाम रही। कार्यक्रम के  आरंभ में डॉ. ममता त्रिवेदी ने रामवंदना प्रस्तुत की।




शास्त्री जी से  जुड़ी स्मृतियों और उनके व्यक्तित्व व कृतित्व के विविध पहुलओं को  सांझा करते हुए पुस्तकालय के अध्यक्ष  डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कहा कि आचार्य शास्त्री जी ने अपने विद्यार्थियों को अच्छे संस्कार दिए। उन्होंने कहा कि उन्होंने क्रोध को त्यागने के लिए बहुत ही सुंदर उद्धरण देकर समझाया कि 


"न इतना हलवा बन कि चट कर जाएं भूखे                                                              
न इतना कड़वा बन कि जो चखे वो थूके।"

कोलकाता ट्रामवेज कंपनी के चेयरमैन और राजनेता शांति लाल जैन ने कहा कि वे समझाया करते थे कि राजनेताओँ को फिजूलखर्ची से बचना चाहिए। उन्होंने हमेशा साधारण जीवन-यापन किया। श्री जैन ने पुस्तकालय समिति को सुझाव दिया कि शास्त्री जी के नाम एक डाक टिकट जारी किए जाने का  प्रस्ताव केन्द्र के समक्ष रखा जाना चाहिए।

इस अवसर पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार और प्रभात वार्ता के संपादक राज मिठौलिया ने कहा कि शास्त्री जी के सांस्कृतिक  एवं साहित्यक अवदान का सही मूल्यांकन नहीं हो पाया। उन्होंने उन पर शोध की व्यवस्था किए जाने का सुझाव रखा ताकि भावी पीढ़ी को मार्गदर्शन मिल सके।

अपने छात्र जीवन की स्मृतियों के अनमोल पहलुओं को याद करते हुए कोलकाता विश्वविद्यालय की हिन्दी की विभागाध्यक्षा डॉ.राजश्री शुक्ला ने कहा कि मैं अध्यापन कार्य के माध्यम से उनके द्वारा  सौंपी गई विरासत को पूरी निष्ठा से आगे बढ़ाने में तत्पर  हूं।


बनारस से पधारे रवीन्द्र साहित्य मर्मज्ञ अमिताभ भट्टाचार्य ने कहा कि कुछ लोग बुद्धिजीवी होते हैं, बुद्धि उनकी आजीविक होती है लेकिन जिन लोगों के लिए बुद्धि है जीवन,ऐसे व्यक्तित्वों में है आचार्य विष्णुकांत शास्त्री।


वरिष्ठ कवि ध्रुवदेव मिश्र पाषाण ने कहा कि मर्यादा टूटेगी तो महाभारत होगा और मर्यादा का हरण होगा तो लंकादहन होगा लेकिन शास्त्री जी के संस्कारों में कट्टरता नहीं थी, दृढ़ता अवश्य थी।  शास्त्री जी को कविता से ऊर्जा मिलती थी, जो कविता से ऊर्जा प्राप्त करेगा वही धरती का 'लायक' बेटा होगा। वे धरती के 'लायक' बेटे थे। वे अध्यापक की भूमिका  को राजनेता को से ऊपर मानते थे। वे भारतीय संस्कृति के गोमुख के प्रदूषित नहीं होने देना चाहते थे। 

कार्यक्रम के अध्यक्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश गिरधर मालवीय ने कहा कि जब मैं उनसे मिल, मुझ लगा कि मैं एक साधु के पास, संत के पास, एक आदर्श के पास पहुंचा हूं। ऐसा अजताशत्रु ढूंढना मुश्किल है। वे राममय थे। 




धन्यवाद ज्ञापन करते हुए जुगलकिशोर जैथलिया ने कहा कि श्री कुमारसभा  पुस्तकालय की कोशिश होगी कि शास्त्री जी के अप्रकाशित व्याख्यानों को प्रकाशित कर पुस्तक खंडों में सहेजा जाए।


पुस्तकालय की साहित्य मंत्री श्रीमती दुर्गा व्यास ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया। 


दर्शक दीर्घा 

 इस अवसर पर सभी अतिथि वक्ताओं को पुस्तकालय की ओर से अरुण मल्लावत, कवि व शायर रवि प्रताप सिंह, तारा दुग्गड़, कवि गिरधर राय और ममता त्रिवेदी ने शास्त्री जी के गीता पर आधारित पुस्तक खंडों के सेट भेंट किए।
छायांकन व प्रस्तुति - नीलम शर्मा 'अंशु'

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