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मंगलवार, अप्रैल 17, 2012

कोलकाता की एक शाम कवियों-शायरों के ना

 कोलकाता की एक शाम कवियों-शायरों के नाम.....

अपने आंसू की धार मुझे दे दो
मैं उससे बड़ी मुस्कान तुम्हें दे दूंगा।




महानगर कोलकाता के औद्योगिक अंचल काशीपुर मेंबैसवारा सहित्य परिषदद्वारा 15 अप्रैल की शामकवि सम्मेलनका आयोजन किया गया। कार्यक्रम मेंहिन्दी-उर्दू के कवियों व शायरों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं।अध्यक्षतालब्ध-प्रतिष्ठित वरिष्ठ कवि डॉ. अरुण प्रकाश अवस्थीनेकी । हिन्दी में भानु प्रताप त्रिपाठी 'सरल', शंभु जालान निराला,  प्रो. अगम शर्मारवि प्रताप सिंह,  डॉ. गिरधर राय,  जगेश तिवारी,  विजय कुमार चौबेप्रकाश सिंह सावननीलम शर्मा 'अंशु'   तथा उर्दू में अनवर बाराबंकीमुमताज मुजफ्फरपुरीबदूद आलम आफ़ाकीनश्तर शहूदीइरशाद मज़हरीआदि ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। कार्यक्रम के आरंभ में भानु प्रताप सरल ने सरस्वति वंदना व बदूद आलम आफ़ाक़ी ने नातिया क़लाम पेश किया। शहर के जाने-माने साहित्य- प्रेमी दुर्गा दत्त सिंह के संयोजन में कार्यक्रम काफ़ी सफल रहा। इस मौके पर भारी संख्या में साहित्यप्रेमी व बुद्धिजीवी श्रोताओं ने साहित्यिक रसधार का आनंद उठाया।  कुशल संचालन अपने चिर-परिचित अंदाज़ में प्रो. अगम शर्मा ने किया।

शायर बदूद आलम आफ़ाक़ी की बानगी देखें -

किस्मत की लकीरों को बदलते नहीं देखा
पूरब से कभी चांद निकलते नहीं देखा
एक खेल है इस दौर में बहुओं को जलाना
दूल्हों को कभी किसी ने जलते नहीं देखा।

मुमताज मुजफ्फरपुरी -

ये कह रही थी मौत सिकंदर के सामने
चलता है किसका ज़ोर मुक्द्दर के सामने
हमसाए सारे मेरे तमाशाई बन गए
घर मेरा जल रहा था समंदर के सामने।

नीलम शर्मा 'अंशु'  ने कुछ ऐसी बानगी श्रोताओं के समक्ष रखी -  

     तू किसी को ख़्वाब की मानिंद
अपनी नींदों में रखे ये रज़ा है तेरी
पर यहाँ किस कंबख्त को नींद आती है?
अरे, तुझसे भले तो ये अश्क हैं
कभी मुझसे जुदा जो नहीं होते।

अध्यक्ष डॉ. अवस्थी फ़रमाते हैं -  

अपने आँसू की धार मुझे दे दो
मैं उससे बड़ी मुस्कान तुम्हें दे दूंगा।

दूसरी तरफ  प्रो. अगम शर्मा  अपनी कविता में कुछ यूं कहते हैं - 


हर तरह से तशनगी का हल निकलता है
जल कहोपानी कहो क्या फर्क पड़ता है।



और वहीं गज़ल के मतले  में वे ये कहते नज़र आते हैं - 

तेज़ हवाओं ने कितने तूफान उठाएं हैं
फिर भी हमने हर हालत में दीये जलाए हैं। 

और  रवि प्रताप सिंह की कविता की पंक्तियां कुछ ऐसा कहती हैं -

रज्जोकमलाबिमलामुनिया सारी सखियां ससुराल गईं
अब झूला वो कैसे झूलें जो बिरहा की डाल पर डाल गईं
उस अकेली अल्हड़ के उर में जब कसक उभरती है
तब कोई कविता बनती है।

वहीं तरन्नुम में पेश की गई उनकी ग़ज़ल के शेर कुछ ऐसी रंगत बिखेरते हैं - 

कोशिश हज़ार करके भी रौशन न हुआ हो
मुमकिन है वो चिराग हवाओं ने छुआ हो।

रखता नहीं वो फूल किताबों में मैं कभी
जिस फूल को कभी किसी भंवरे ने छुआ हो। 




))))))))((((((((

















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