सुकीर्ति गुप्ता को याद करते हुए.........
लगभग 20 वर्ष पहले कोलकाता के भारतीय भाषा परिषद सभागार में कोई एक कार्यक्रम । कार्यक्रम के समापन के बाद मेरी हमउम्र कुछ लड़कियां उनसे मिल रही थीं। वे सभी से बड़ी आत्मीयता से मिल रही थीं। मेरा स्वभाव रहा है कि मैं जल्दी किसी के साथ खुल नहीं पाती थी। हाँ, जानती सभी को थी कि ये अमुक हैं, वो अमुक। अचानक उन्होंने मुझे पास बुलाकर कहा, चेहरा जाना-पहचाना लग रहा है (चूँकि साहित्यिक कार्यक्रमों में नियमित शिरकत किया करती थी) क्या हमारी छात्राओं में से हो। मैंने विनम्रता से कहा, जी नहीं, मेरी शिक्षा-दीक्षा कोलकाता से नहीं हुई है। मैंने उन्हें नाम बताया तो बड़े प्यार से गले लगाते हुए बोलीं - अरे हम लोग तो साथ-साथ छपते हैं जनसत्ता में। नाम से तो पहचानती हूँ मैं तुम्हें। जनसत्ता के कला कॉलम में कई बार एक साथ छपने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। फिर कई बार उनके आवास पर भी जाने का संयोग बना। इधर उनका कार्यक्रमों में आना-जाना ज़रा कम हो गया था।
कल उनके निधन का समाचार मिला। शिक्षायतन कॉलेज के हिन्दी विभाग से बतौर विभागाध्यक्ष वे सेवानिवृत्त हुई थीं। कविताओ, कहानियों, समीक्षाओं, कला समीक्षाओं के माध्यम से साहित्य जगत में उनकी सक्रियता बनी रही। अनेक पुस्तकें प्रकाशित। महिलाओं द्वारा हस्तलिखित पत्रिका साहित्यिक की शुरूआत कर उन्होंने महिलाओं को इस मुहिम से जोड़ा था।
कोलकाता का साहित्य जगत उनके निधन से मर्माहत है।
संस्कृति सरोकार परिवार की तरफ से भी उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
- नीलम शर्मा 'अंशु'
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